सोमवार, 6 जुलाई 2020

सावन का महीना (श्रावण मास)


हिंदू कैलेंडर के अनुसार पांचवा माह श्रावण मास यानि सावन का महीना होता है। श्रावण मास का आगमन आषाढ़ मास के बाद होता है। सावन का महीना वर्षा ऋतु के समय आती है इसलिए यह माह हरियाली भरी होती है। हिंदुओं के लिए यह माह विशेष होता है क्योंकि पूरे सावन माह भर भगवान शिव की पूजा की जाती है। वैसे तो पूरा सावन का महीना ही भगवान शिवजी के लिए विशेष होता है लेकिन सावन के महीने का हर सोमवार और भी ज्यादा विशेष होता है। सावन महीने के प्रत्येक सोमवार भगवान शिव जी की पूजा अर्चना की जाती है। हिंदू धर्म में सावन माह को बड़े धूमधाम से मनाया जाता है तथा भगवान शिव जी की पूजा पाठ किया जाता है। इस माह में सभी श्रद्धालु गण कांवड़ यात्रा निकालते हैं तथा लंबे-लंबे दूर तक पैदल चलकर बम भोले या हर हर महादेव का नारा लगाते हुए कांवड़ यात्रा को संपन्न करते हैं। चूंकि यह माह भगवान शिव के लिए विशेष होता है इसलिए सभी श्रद्धालु गण भगवान शिव जी को प्रसन्न करने के लिए प्रत्येक सोमवार उपवास रखते हैं तथा बेलपत्र, दूध, शहद, दही, घी, पानी  आदि सामग्री को चढ़ाते है। 

सावन का महीना (श्रावण मास)

कांवड़ यात्रा :


सावन माह की शुरुआत होने के बाद देशभर से कांवड़ तथा झंडा यात्रा का शुभारंभ भी हो जाता है। हर साल सावन के महीने भर देशभर में कई प्रसिद्ध श्रावणी मेलों और कांवड़ यात्रा का आयोजन किया जाता है। हर वर्ष इस मास की शुरुआत होते ही कोने-कोने से सैकड़ों शिव भक्त आस्था और उत्साह पूर्वक कांवड़ यात्राएं निकालते हैं। भारत में कांवड़ यात्रा वर्षों पुरानी एक विशेष धार्मिक परंपरा है, जो हर साल हर्षोउल्लास के साथ मनाई जाती है। इस दौरान भगवान शिव के भक्त, जिन्हे कांवडि़ए कहा गया है, वो मां गंगा और नर्मदा के तट से अपनी कांवड़ में पवित्र जल भरते हैं, और फिर बाद में उसी पवित्र जल से शिवालयों के शिवलिंग का जलाभिषेक करते हुए, महादेव को प्रसन्न करते हैं। इस तरह की शिव भक्त हजारों किलोमीटर चलकर कावड़ यात्रा को संपन्न करते हैं। कहा जाता है कि सावन का महीना भगवान शिव के लिए अति प्रिय होता है तथा यह महीना भगवान शिव जी को आसानी से प्रसन्न करने का माह होता है इसलिए सभी शिव भक्त भगवान शिव जी को प्रसन्न करने का प्रयास करते है उसमें कावड़ यात्रा भी सम्मिलित है।



कावड़ यात्रा का इतिहास :

हमारे भारत के विद्वानों के अनुसार यह मानना है कि सर्वप्रथम भगवान परशुराम ने उत्तर प्रदेश के बागपत के पास स्थित ‘पुरा महादेव’ का कांवड़ से गंगाजल लाकर जलाभिषेक किया था। परशुराम इस प्रचीन शिवलिंग का जलाभिषेक करने के लिए गढ़मुक्तेश्वर से गंगा जी का जल लाए थे। यह सर्वप्रथम कांवड़ यात्रा था जिसे आज भी सभी शिव भक्तों के द्वारा किया जाता है।  आज भी इस परंपरा का पालन करते हुए सावन के महीने में गढ़मुक्तेश्वर से जल लाकर लाखों लोग 'पुरा महादेव' का जलाभिषेक करते हैं। गढ़मुक्तेश्वर का वर्तमान नाम ब्रजघाट है । इस तरह है यदि देखा जाए तो कांवड़ यात्रा हमारे प्राचीन काल से चली आ रही है। इसके साथ साथ हमारे विद्वान यह भी बताते हैं कि प्रभु श्री राम ने भी कावड़ यात्रा करके भगवान शिव जी को जलाभिषेक किए थे । रावण भी कांवड़ यात्रा करके भगवान शिव जी को जलाभिषेक किए थे। कुछ मान्यताओं के अनुसार यह भी कहा जाता है कि श्रवण कुमार ने भी कावड़ यात्रा की थी।


सावन का महीना (श्रावण मास)


सावन सोमवार पूजा :



महादेव को भोलेनाथ भी कहा जाता है क्योंकि महादेव को केवल श्रद्धा पूर्वक जल चढ़ाकर भी प्रसन्न किया जा सकता है। लेकिन जब पूजा विधि की बात आती है तब हमें सामान्य विधि के तौर पर हर सावन सोमवार को सुबह उठकर नहा धोकर स्वच्छ मन से पूजा करना चाहिए। पूजा स्थल को स्वच्छ रखें तथा गंगाजल का उपयोग करके उस जगह को पवित्र बना ले। भगवान शिव जी को श्रद्धा पूर्वक सुपारी, पंच अमृत, नारियल, बेल पत्र, धतूरा, फल, फूल आदि अर्पित कर सकते हैं। दीपक जलाकर महादेव को ध्यान लगाएं। शिव पुराण, शिव चालीसा, महामृत्युंजय मंत्र आदि का पाठ कर सकते हैं । 
          श्रावण माह भगवान शिव जी का अत्यंत प्रिय मास है। इस मास में शिव की भक्ति करने से उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है। उनके पूजन के लिए अलग-अलग विधान भी है। भक्त जैसे चाहे उनका अपनी कामनाओं के लिए उनका पूजन कर सकता है। सावन के महीने में प्रतिदिन श्री शिवमहापुराण व शिव स्तोस्त्रों का विधिपूर्वक पाठ करके दुध, गंगा जल, बेलपत्र, फलादि सहित शिवलिंग का पूजन करना चाहिए। इसके साथ ही इस मास में “ऊँ नम: शिवाय:” मंत्र का जाप करते हुए शिव पूजन करना अत्यंत ही लाभकारी माना जाता है।


 सावन माह का मेला :

सावन के इस पवित्र माह में भारत के बहुत जगहों पर सावन मेला का भी आयोजन किया जाता है तथा इस मेला में घूमने के लिए भारत के कोने कोने से लोग घूमने आते हैं ।


१. काशी विश्वनाथ मेला :


सावन माह में काशी में सावन मेला का आयोजन किया जाता है। काशी के विश्वनाथ के दर्शन के लिए भारत के कोने-कोने से लोग आते हैं। यहां कांवड़ियों का भी भीड़ बहुत ज्यादा होता है ।

२. हरिद्वार का सावन मेला :


 हरिद्वार में सबसे बड़ा सावन मेला का आयोजन किया जाता है। सावन माह के शुरू होते ही यहां कांवड़ियों का आना चालू हो जाता है। यहां पर भारत के कोने कोने से भगवान शिव के दर्शन के लिए आते हैं तथा पूजा पाठ करते हैं। जितने भी कांवड़िया यहां आते हैं वह गंगा जल को लेकर वापस होते हैं।


३. झारखंड में सावन मेला :


झारखंड के देवघर में भी सावन मेला का आयोजन किया जाता है। हर साल करोड़ों कांवड़िये झारखंड के देवघर जिला स्थित विश्व प्रसिद्ध वैद्यनाथ धाम में बिहार के सुल्तानगंज में गंगा नदी से जल लेकर द्वादश ज्योतिर्लिंग में से एक का जलाभिषेक करते हैं। देवघर का सावन मेला भगवान शिव के सबसे बड़े मेलों में शुमार है। यहां सावन मेला को बड़े धूम धाम के साथ मनाते हैं।

४. लखीमपुर का सावन मेला :


सावन का पवित्र महीना शुरू होते ही भोले के भक्त पूरी भक्ति के साथ प्रभु का गुणगान करते हैं। छोटी काशी के नाम से विख्यात पौराणिक नगरी में सावन का मेला शुरू होते ही देश प्रदेश के लाखों श्रद्धालु अवढरदानी के जलाभिषेक को उमड़ते हैं।




निष्कर्स :

इस तरह हमारे भारतीय संस्कृति में सावन माह का विशेष महत्व है और मैंने इस पोस्ट में यही बताने का प्रयाश किया है ।




🚩🚩 आपका दिन शुभ एवम् मंगलमय हो 🚩🚩


ध्यान दें :- भारतीय संस्कृति से सम्बंधित अन्य रोचक लेख देखने हेतु निचे दिये गये लिंक पर क्लिक करे एवम् देखे... 👇👇👇👇

" भारत की प्राचीन भारतीय संस्कृति " ब्लॉग के सभी पोस्ट का लिंक




उम्मीद है कि यह पोस्ट आपको अच्छा लगा होगा । भारतीय संस्कृति से संबंधित जानकारी प्राप्त करने के लिए आप हमारे ब्लॉग के साथ जुड़े रहे तथा अच्छा लगा हो तो कृपया दूसरों के साथ साझा ( शेयर ) भी करें ताकि सभी लोग हमारे भारत की महान प्राचीन संस्कृति से अवगत हो। ब्लॉग या पोस्ट से संबंधित कोई प्रश्न हो या अपनी अनमोल राय देनी हो तो आप टिप्पणी ( कमेंट ) कर सकते है या हमें इस dgg021095@gmail.com ईमेल आईडी से भी संपर्क कर सकते है।
      

हमारे ब्लॉग के साथ जुडे रहने तथा नये पोस्ट का अपडेट पाने के लिये हमारे सोशल मीडिया माध्यम से जुडे। लिंक निचे दिया गया है उसपर क्लिक करके आप जुड सकते है -




🙏🙏🙏 धन्यवाद् 🙏🙏🙏


शनिवार, 4 जुलाई 2020

सोमनाथ मंदिर

सोमनाथ मंदिर हमारे भारत देश के गुजरात राज्य में स्थित है। यह मंदिर गुजरात के पश्चिमी छोर पर स्थित है। यह एक प्राचीन मंदिर है जो हिंदुओं का आस्था का केंद्र है। यह मंदिर प्राचीन तथा ऐतिहासिक सूर्य मंदिर है। 12 ज्योतिर्लिंगों में से प्रथम ज्योतिर्लिंग इसी सोमनाथ मंदिर को कहा जाता है। इस तरह सोमनाथ मंदिर हिंदुओं की आस्था का मुख्य केंद्र है। यह मंदिर भारत के गुजरात राज्य के पश्चिमी छोर के सौराष्ट्र क्षेत्र के वेरावल बंदरगाह में स्थित है। ऋग्वेद के अनुसार इस सोमनाथ मंदिर का निर्माण स्वयं चंद्रदेव ने की थी। चंद्र देव का एक नाम सोम भी है तथा चंद्रदेव ने भगवान शिव जी को पूज्य तथा अपना नाथ मानकर इसी समुद्र के किनारे तपस्या की थी। इस तरह मंदिर का नाम सोमनाथ पड़ा। सोमनाथ मंदिर समुद्र के किनारे स्थित है। महाशिवरात्रि के दिन बड़े ही धूमधाम के साथ भगवान शिव जी की पूजा अर्चना की जाती है तथा यहां इसे एक त्यौहार की तरह मनाया जाता है।


सोमनाथ मंदिर


सोमनाथ मंदिर का इतिहास :


सोमनाथ मंदिर  का महत्व प्राचीन काल से ही रहा है । इस मंदिर का वास्तु कला ऐसा था कि सब लोग देखकर आश्चर्यचकित रह जाते थे। कहते हैं कि ज्योतिर्लिंग हवा में स्थित था। यह सब देख कर उस समय के शासक प्राय: मुस्लिम शासक मंदिर को तुड़वा दिया। ऐसा प्रयास बहुत बार किया गया। इस प्रकार यह मंदिर कई बार टूटा और कई बार इसका पुनर्निर्माण किया गया ।
            सबसे पहले इस मंदिर के उल्लेखानुसार ईसा के पूर्व यह अस्तित्व में था। इसी जगह पर द्वितीय बार मंदिर का पुनर्निर्माण 649 ईस्वी में वैल्लभी के मैत्रिक राजाओं ने किया। पहली बार इस मंदिर को 725 ईस्वी में सिन्ध के मुस्लिम सूबेदार अल जुनैद ने तुड़वा दिया था । उसके बाद प्रतिहार राजा नागभट्ट ने 815 ईस्वी में इस मंदिर का पुनर्निर्माण का कार्य करवाया।
          समय बीतता गया फिर महमूद गजनवी ने सन् 1024 में अपने लगभग 5,000 साथियों के साथ इस मंदिर पर हमला कर किया । इस मंदिर की संपत्ति को लूट लिए तथा इसे नष्ट कर दिया। तब इस गंभीर परिस्थिति को देखकर इस प्राचीन मंदिर की रक्षा के लिए निहत्‍थे हजारों लोगो ने विरोध किए तथा वे लोग मारे गए। ये वे लोग थे, जो पूजा कर रहे थे या मंदिर के अंदर दर्शन लाभ ले रहे थे और जो गांव के लोग मंदिर की रक्षा के लिए निहत्थे ही दौड़ पड़े थे। इस तरह सोमनाथ मंदिर की काफी क्षति हुई थी।महमूद के मंदिर तोड़ने और लूटने के बाद गुजरात के राजा भीमदेव और मालवा के राजा भोज ने इसका पुनर्निर्माण कराया। 1093 में सिद्धराज जयसिंह ने भी मंदिर निर्माण में सहयोग दिया। 1168 में विजयेश्वर कुमारपाल और सौराष्ट्र के राजा खंगार ने भी सोमनाथ मंदिर के सौन्दर्यीकरण में योगदान किया था।
                  सन् 1297 में जब दिल्ली सल्तनत के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति नुसरत खां ने गुजरात पर हमला किया तो उसने सोमनाथ मंदिर को दुबारा तोड़ दिया और सारी धन-संपदा लूटकर ले गया। मंदिर को फिर से हिन्दू राजाओं ने बनवाया। लेकिन सन् 1395 में गुजरात के सुल्तान मुजफ्‍फरशाह ने मंदिर को फिर से तुड़वाकर सारा चढ़ावा लूट लिया। इसके बाद 1412 में उसके पुत्र अहमद शाह ने भी यही किया। मुस्लिम शासकों के द्वारा सोमनाथ मंदिर को तुड़वाने का सिलसिला जारी था तथा हिंदू राजा इन्हें बनाने का प्रयास किए। 
        उसके बाद मुस्लिम क्रूर बादशाह औरंगजेब के काल में सोमनाथ मंदिर को दो बार तोड़ा गया- पहली बार 1665 ईस्वी में और दूसरी बार 1706 ईस्वी में। 1665 में मंदिर तुड़वाने के बाद जब औरंगजेब ने देखा कि हिन्दू उस स्थान पर अभी भी पूजा-अर्चना करने आते हैं तो उसने वहां एक सैन्य टुकड़ी भेजकर कत्लेआम करवाया। जब भारत का एक बड़ा हिस्सा मराठों के अधिकार में आ गया तब 1783 में इंदौर की रानी अहिल्याबाई द्वारा मूल मंदिर से कुछ ही दूरी पर पूजा-अर्चना के लिए सोमनाथ महादेव का एक और मंदिर बनवाया गया। इस तरह हिंदू शासकों ने मंदिर का पुनर्निर्माण तथा हिंदू आस्था को बरकरार रखने का अटूट प्रयास किया और इन्हीं सब प्रयासों के कारण ही अभी हम वर्तमान समय में सोमनाथ मंदिर का दर्शन कर पाते हैं ।
     भारत की आजादी के बाद सरदार वल्लभभाई पटेल ने समुद्र का जल लेकर नए मंदिर के निर्माण का संकल्प लिया। उनके संकल्प के बाद 1950 में मंदिर का पुनर्निर्माण हुआ। इस तरह मंदिर का 6 बार टूटने के बाद 7वीं बार इस मंदिर को कैलाश महामेरू प्रासाद शैली में बनाया गया। इसके निर्माण कार्य से सरदार वल्लभभाई पटेल भी जुड़े रह चुके हैं। इस समय जो मंदिर खड़ा है उसे भारत के गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने बनवाया और दिसंबर 1995 को भारत के राष्ट्रपति शंकरदयाल शर्मा ने इसे राष्ट्र को समर्पित किया।
सोमनाथ मंदिर


 सोमनाथ मंदिर का महत्व

              
 सोमनाथ मंदिर अरब सागर के तट पर स्थित है। सोमनाथ मंदिर में जाकर भगवान शिव की पूजा करने पर सारे पाप धुल जाते हैं। भोलेनाथ और माता पार्वती की कृपा प्राप्त होती है। सोमनाथ मंदिर के ज्योतिर्लिंग की पूजा करने से जीवन सुखद हो जाता है, मन को शांति प्राप्त होती है।यह मंदिर गर्भगृह, सभामंडप और नृत्यमंडप- तीन प्रमुख भागों में विभाजित है। इसका 150 फुट ऊंचा शिखर है। इसके शिखर पर स्थित कलश का भार लगभग दस टन है और इसकी ध्वजा लगभग 27 फुट ऊंची है। इसके अबाधित समुद्री मार्ग- त्रिष्टांभ के विषय में ऐसा माना जाता है कि यह समुद्री मार्ग परोक्ष रूप से दक्षिणी ध्रुव में समाप्त होता है। यह हमारे प्राचीन ज्ञान का अद्‍भुत साक्ष्य माना जाता है। इस तरह सोमनाथ मंदिर हिंदुओं की आस्था का केंद्र है। यहां चंद्रदेव में तपस्या की थी तथा शिव जी और माता पार्वती ज्योतिर्लिंग के रूप में यहां विराजमान हैं। जो भी भक्त यहां आकर पूजा अर्चना करते हैं उनकी मनोकामना पूर्ण होती है तथा मन की शांति प्राप्त होती है। यहां आकर पूजा करने से सारे पाप धुल जाते हैं तथा जीवन सफल हो जाता है। इस मंदिर का महत्व इसलिए और बढ़ जाता है क्योंकि यह 12 ज्योतिर्लिंगों में से प्रथम ज्योतिर्लिंग माना जाता है। यह मंदिर विश्व प्रसिद्ध है तथा पूरे विश्व भर से यहां घूमने तथा भगवान शिव का दर्शन करने आते हैं। महाशिवरात्रि के दिन पर्व के रूप में भगवान शिव जी की पूजा अर्चना की जाती है तथा बड़े धूमधाम के साथ यह पर्व मनाया जाता है।




🚩🚩 आपका दिन शुभ एवम् मंगलमय हो 🚩🚩




ध्यान दें :- भारतीय संस्कृति से सम्बंधित अन्य रोचक लेख देखने हेतु निचे दिये गये लिंक पर क्लिक करे एवम् देखे... 👇👇👇👇

" भारत की प्राचीन भारतीय संस्कृति " ब्लॉग के सभी पोस्ट का लिंक





उम्मीद है कि यह पोस्ट आपको अच्छा लगा होगा । भारतीय संस्कृति से संबंधित जानकारी प्राप्त करने के लिए आप हमारे ब्लॉग के साथ जुड़े रहे तथा अच्छा लगा हो तो कृपया दूसरों के साथ साझा ( शेयर ) भी करें ताकि सभी लोग हमारे भारत की महान प्राचीन संस्कृति से अवगत हो। ब्लॉग या पोस्ट से संबंधित कोई प्रश्न हो या अपनी अनमोल राय देनी हो तो आप टिप्पणी ( कमेंट ) कर सकते है या हमें इस dgg021095@gmail.com ईमेल आईडी से भी संपर्क कर सकते है।
   

हमारे ब्लॉग के साथ जुडे रहने तथा नये पोस्ट का अपडेट पाने के लिये हमारे सोशल मीडिया माध्यम से जुडे। लिंक निचे दिया गया है उसपर क्लिक करके आप जुड सकते है -



              🙏🙏🙏 धन्यवाद् 🙏🙏🙏






गुरुवार, 2 जुलाई 2020

भारत की प्राचीन स्थापत्यकला


भारत की प्राचीन स्थापत्य कला हमारे भारतीय संस्कृति का सजीव चित्रण करती है। भारत में प्राचीन स्थापत्य कला का ऐसा चित्रण दिखता है जिसे देखकर विश्व भर के लोग चकित रह जाते हैं क्योंकि भारत में विभिन्न शैलियों के आधार पर स्थापत्य कला का उपयोग किया गया है। भारत के प्राचीन स्थापत्य कला को देखकर विश्व भर के लोग आश्चर्यचकित रह जाते हैं क्योंकि इतने पुराने समय में भी इतनी बारिकी से मनोरम रूप देना, कुछ हद तक आधुनिकता में भी संभव नहीं। 
भारत की प्राचीन स्थापत्यकला

 

भारत की प्राचीन संरचना तथा स्थापत्य कला :


हमारे भारत की सबसे प्राचीन सभ्यता सिंधु घाटी सभ्यता है। जब से इसके बारे में बताया चला है तब से नया-नया रहस्य खुलता रहा है तथा स्थापत्य कला के बारे में भी पता चलता रहा है। इन सब चीजों को देखकर यह लगता है कि उस समय के लोग भी अपना विचार व्यक्त करने के लिए दीवारों पर खुदाई कर देते थे तथा अपने स्थापत्य कला का प्रदर्शन करते थे।सीमित आवश्यकताओं में विश्वास रखनेवाले, अपने कृषिकर्म और आश्रमजीवन से संतुष्ट आर्य प्राय: ग्रामवासी थे और शायद इसीलिए, अपने परिपक्व विचारों के अनुरूप ही, समसामयिक सिंधु घाटी सभ्यता के विलासी भौतिक जीवन की चकाचौंध से अप्रभावित रहे। कुछ भी हो, उनके अस्थायी निवासों से ही बाद के भारतीय वास्तु का जन्म हुआ प्रतीत होता है। इसका आधार धरती में और विकास वृक्षों में हुआ, जैसा वैदिक वाङ्मय में महावन, तोरण, गोपुर आदि के उल्लेखों से विदित होता है। अत: यदि उस अस्थायी रचनाकाल की कोई स्मारक कृति आज देखने को नहीं मिलती, तो कोई आश्चर्य नहीं।
      समय की धारा के साथ वक्त बीतता गया तथा धीरे-धीरे नगरों की भी रचना हुई और स्थायी निवास भी बने। बिहार में मगध की राजधानी राजगृह शायद 8वीं शती ईसा पूर्व में उन्नति के शिखर पर थी। यह भी पता लगता है कि भवन आदिकालीन झोपड़ियों के नमूने पर प्रायः गोल ही बना करते थे। दीवारों में कच्ची ईंटें भी लगने लगी थीं और चौकोर दरवाजे खिड़कियाँ बनने लगी थीं। यह सब चीजें उस समय की मानसिकता को भी प्रदर्शित करती है। बौद्ध लेखक धम्मपाल के अनुसार, पाँचवीं शती ईसा पूर्व में महागोविन्द नामक स्थपति ने उत्तर भारत की अनेक राजधानियों के विन्यास तैयार किए थे। चौकोर नगरियाँ बीचोबीच दो मुख्य सड़कें बनाकर चार चार भागों में बाँटी गई थीं। एक भाग में राजमहल होते थे, जिनका विस्तृत वर्णन भी मिलता है। सड़कों के चारों सिरों पर नगरद्वार थे। मौर्यकाल (4थी शती ई. पू.) के अनेक नगर कपिलवस्तु, कुशीनगर, उरुबिल्व आदि एक ही नमूने के थे, यह इनके नगरद्वारों से प्रकट होता है। जगह-जगह पर बाहर निकले हुए छज्जों, स्तंभों से अलंकृत गवाक्षों, जँगलों और कटहरों से बौद्धकालीन पवित्र नगरियों की भावुकता का आभास मिलता है।
                 उदाहरण के तौर पर हम आपको कुछ स्थापत्य कला के बारे में बता रहे हैं जो विश्व का आकर्षण का केंद्र है जैसे कि मीनाक्षी मंदिर मदुरई, खजुराहो का कंदारिया महादेव मंदिर, आबू पर्वत पर स्थित देलवाड़ा जैन मंदिर आदि। इन सब जगहों पर स्थापत्य कला का चित्रण मिलता है। 


भारत की प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता :


सिंधु घाटी सभ्यता भारत की सबसे प्राचीन सभ्यता है जो आज से लगभग 5000 वर्ष पुराना सभ्यता है। सिंधु घाटी सभ्यता में मिले अवशेष से यह पता चलता है कि वे लोग एक पुरी व्यवस्था के साथ जीवन यापन करते थे। जब पूरे विश्व में जागरण का दौर नहीं था उस समय भारत पर व्यवस्थित सभ्यता थी। सोच सकते हैं कि आज से लगभग 5000 वर्ष पहले लोगों को पता था कि आने जाने के लिए सड़क होना चाहिए तथा पानी निकास के लिए नाली होनी चाहिए और रहने के लिए आवास की आवश्यकता है। उस समय के लोगों का नगर नियोजन संबंधित ज्ञान में परिपक्व थे। उस समय के मिले अवशेष से यह पता चलता है कि वे लोग ज्यादा मूर्ति पूजा में विश्वास नहीं रखते थे क्योंकि मंदिर के अवशेष नहीं मिले हैं। शिव की मूर्ति मिली है। इस प्रकार वे लोग निराकार शक्ति पर विश्वास रखते थे। सिंधु घाटी सभ्यता 1750 ईसा पूर्व आने तक खत्म हो गया। कारण का कोई प्रमाण नहीं है लेकिन नदी के किनारे बसे रहने के कारण बह गया या नष्ट हो गया।
          


आर्यन की सभ्यता :


1500 ईसा पूर्व में आर्यंस है और यही लोग वेद और उपनिषद लिखे। उनका कार्यकाल 1500 से 500 ईसा पूर्व तक था । इस तरह धीरे-धीरे एक पूरी सभ्यता विकसित होने लगी। पहले तो सभ्यता विकसित हुई थी हमें सिंधु घाटी नदी के किनारे हुई थी फिर बाद में धीरे-धीरे वे लोग गंगा नदी की ओर बढ़ने लगे तथा गंगा नदी के किनारे रहना चालू किए। चूंकि हम जानते हैं कि यदि कोई सभ्यता विकसित करनी हो तो नदी का रहना जरूर है  क्योंकि यदि नदी है तो खेती किसानी मैं दिक्कत नहीं होती और यदि अन्य भरपूर है तो सभ्यता विकसित करने में दिक्कत नहीं जाती। आर्यंस का मुख्य व्यवसाय पशुपालन था । 
               यह तो केवल हमारी भारतीय संस्कृति की शुरुआत है। धीरे धीरे समय की धारा के साथ साथ बहुत सारी सभ्यताएं आए तथा अभी अपने अवशेष छोड़ गए। फिर यह सभ्यताएं धीरे धीरे राजवंश को ग्रहण कर लिया। फिर बहुत सारे राजवंश शासक हुए जिन्होंने शासन किया और बहुत सारे स्थापत्य कला का भरपूर प्रयोग किया। प्रारंभिक में हमारी भारतीय संस्कृति हिंदू धर्म पर आधारित थी तत्पश्चात बहुत सारे धर्म का विकास हुआ और उन्होंने भी हमारे देश भारत पर शासन किया। 


भारतीय स्थापत्य कला की विशेषता :


 भारतीय स्थापत्य कला की विशेषताएं यह हैं कि सजीव चित्रण करता है। यदि हम भारत के प्राचीन स्थापत्य कला को देखते हैं तो उस समय काल की पूरी परिस्थितियां, युगो पुराना पौराणिक गाथाएं, मूर्ति कला का मनोरम चित्रण तथा बहुत सारी चीजें दीवारों पर खोदकर प्रदर्शित किया जाता था और इनको इतनी बारीकी से करते थे कि आधुनिकता की तकनीकी भी असक्षम है। भारत हिंदू प्रधान देश है तथा यहां बहुत सारी प्राचीन मंदिर भी बनी हुई है। भारत की प्राचीन स्थापत्य कला का सुंदर चित्रण यहां के मंदिरों के दीवारों पर दिखाई देती है। भारत में मंदिर बनाने का समय काल मौर्य काल से शुरू हुआ। समय के साथ साथ मंदिर बनाने के तरीका में परिवर्तन होना शुरू हुआ। जब हम प्राचीन मंदिर को देखते हैं तब दीवारों पर देवी-देवताओं की मूर्तिया बनी हुई होती हैं जो बड़ा ही अच्छा लगता है। इस तरह हमारे भारत के प्राचीन स्थापत्य कला भारत की प्राचीन भारतीय संस्कृति को बड़े ही अच्छे ढंग से प्रदर्शित करती है।
        हम आपको हमारे ब्लॉक में भारतीय स्थापत्य कला के बारे में और भी जानकारी देंगे। इसके लिए आप हमारे ब्लॉक के साथ जुड़े रहे हैं।



🚩🚩 आपका दिन शुभ एवम् मंगलमय हो 🚩🚩


ध्यान दें :- भारतीय संस्कृति से सम्बंधित अन्य रोचक लेख देखने हेतु निचे दिये गये लिंक पर क्लिक करे एवम् देखे... 👇👇👇👇

" भारत की प्राचीन भारतीय संस्कृति " ब्लॉग के सभी पोस्ट का लिंक





उम्मीद है कि यह पोस्ट आपको अच्छा लगा होगा । भारतीय संस्कृति से संबंधित जानकारी प्राप्त करने के लिए आप हमारे ब्लॉग के साथ जुड़े रहे तथा अच्छा लगा हो तो कृपया दूसरों के साथ साझा ( शेयर ) भी करें ताकि सभी लोग हमारे भारत की महान प्राचीन संस्कृति से अवगत हो। ब्लॉग या पोस्ट से संबंधित कोई प्रश्न हो या अपनी अनमोल राय देनी हो तो आप टिप्पणी ( कमेंट ) कर सकते है या हमें इस dgg021095@gmail.com ईमेल आईडी से भी संपर्क कर सकते है।

हमारे ब्लॉग के साथ जुडे रहने तथा नये पोस्ट का अपडेट पाने के लिये हमारे सोशल मीडिया माध्यम से जुडे। लिंक निचे दिया गया है उसपर क्लिक करके आप जुड सकते है -

      


           🙏🙏🙏 धन्यवाद् 🙏🙏🙏