शनिवार, 27 जून 2020

संस्कृति का प्रकृति के साथ जुड़ाव


जब हम प्रकृति के बारे में बात करते हैं तब हम यह देखते हैं कि हमारी संस्कृति का प्रकृति के साथ सामंजस्य जुड़ता है। हमारी भारतीय संस्कृति का प्रकृति के साथ जुड़ाव नजर आते हैं। यह हमारी संस्कृति का प्रकृति के प्रति प्रेम दिखाई पड़ता है। प्रकृति की समय धारा के साथ हमारी भारतीय संस्कृति में तरह-तरह के त्यौहार तथा रीति रिवाज दिखाई पड़ता है। हमने अपनी संस्कृति को प्रकृति के साथ जोड़ दिया है। हमारे भारतीय संस्कृति में पेड़ पौधों की पूजा की जाती है यह भी प्रकृति के प्रति श्रद्धा को प्रदर्शित करता है। पीपल और बरगद जैसे विशाल वृक्ष को हम पूज्य तुल्य समझते हैं और हम जानते हैं यह विशाल वृक्ष हमें भरपूर मात्रा में ऑक्सीजन प्रदान करता है। कहां जाता है जो क्षेत्र पीपल और बरगद के वृक्ष से ढका हुआ रहता है उसके चारों ओर ऑक्सीजन की मात्रा 25% अत्यधिक होती है। पशु पक्षियों को भी संस्कृति के तहत पूज्य तुल्य समझते हैं। गाय को माता समझा जाता है क्योंकि गाय माता की प्रेम, शालीनता आदि मनुष्य को भाती है। गौ माता का गोबर तथा मूत्र को पवित्र माना जाता है। भारत के प्रायः हर घर में तुलसी का पौधा पाया जाता है क्योंकि तुलसी को पवित्र माना जाता है। वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए तो तुलसी का पौधा ऑक्सीजन प्रचुर मात्रा में प्रदान करती है तथा तुलसी का पौधा बहुत सारे दवाइयां में भी उपयोग लाई जाती है। इस पौधे का उपयोग पूजा पाठ में भी किया जाता है। 
संस्कृति का प्रकृति के साथ जुड़ाव

भारतीय संस्कृति के हिंदू धर्म में प्रकृति के पंचतत्व को देव तुल्य समझते हैं। हवा को वायु देव, आग अग्नि देव, धरती को माता कहा जाता है, बारिश के लिए इंद्र देव की पूजा की जाती है। सूरज को सूर्य देव, चंद्रमा को चंद्रदेव, ब्रह्मांड के सभी ग्रहों की भी पूजा की जाती है। 
         हिंदू धर्म में प्रकृति पूजन को प्रकृति संरक्षण के तौर पर मान्यता है। भारत में पेड़-पौधों, नदी-पर्वत, ग्रह-नक्षत्र, अग्नि-वायु सहित प्रकृति के विभिन्न रूपों के साथ मानवीय रिश्ते जोड़े गए हैं। पेड़ की तुलना संतान से की गई है तो नदी को मां स्वरूप माना गया है।
            प्राचीन समय से ही भारत के वैज्ञानिक ऋषि-मुनियों को प्रकृति संरक्षण और मानव के स्वभाव की गहरी जानकारी थी। वे जानते थे कि मानव अपने क्षणिक लाभ के लिए कई मौकों पर गंभीर भूल कर सकता है। अपना ही भारी नुकसान कर सकता है। इसलिए उन्होंने प्रकृति के साथ मानव के संबंध विकसित कर दिए। ताकि मनुष्य को प्रकृति को गंभीर क्षति पहुंचाने से रोका जा सके। यही कारण है कि प्राचीन काल से ही भारत में प्रकृति के साथ संतुलन करके चलने का महत्वपूर्ण संस्कार है।
            जंगल को हमारे ऋषि आनंददायक कहते हैं- 'अरण्यं ते पृथिवी स्योनमस्तु।' यही कारण है कि हिन्दू जीवन के चार महत्वपूर्ण आश्रमों में से ब्रह्मचर्य, वानप्रस्थ और संन्यास का सीधा संबंध वनों से ही है। हम कह सकते हैं कि इन्हीं वनों में हमारी सांस्कृतिक विरासत का सम्वद्र्धन हुआ है। हिन्दू संस्कृति में वृक्ष को देवता मानकर पूजा करने का विधान है। वृक्षों की पूजा करने के विधान के कारण हिन्दू स्वभाव से वृक्षों का संरक्षक हो जाता है। सम्राट विक्रमादित्य और अशोक के शासनकाल में वन की रक्षा सर्वोपरि थी। चाणक्य ने भी आदर्श शासन व्यवस्था में अनिवार्य रूप से अरण्यपालों की नियुक्ति करने की बात कही है।
              हमारे भारतीय संस्कृति में प्रकृति के हर चीज का विशेष महत्व है। हर पुष्प का उपयोग हिंदू धर्म में अलग-अलग भगवान को अर्पित करने के लिए किया जाता है जैसे लक्ष्मी माता को कमल का फूल पसंद है तथा गुलाब का उपयोग लक्ष्मी माता को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है । गणेश भगवान को प्रसन्न करने के लिए दूर्वा का उपयोग किया जाता है । प्रकृति के हर जानवर को हिंदू संस्कृति के तहत भगवान के वाहन के तौर पर जोड़ दिया गया है जैसे कि चूहा गणेश भगवान का वाहन है, नंदी महादेव के वाहन है, शेर दुर्गा माता के वाहन हैं आदि । इस तरह हम देख सकते हैं कि भारतीय संस्कृति का आखिर किस तरह प्रकृति के साथ जुड़ाव है।



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2 टिप्‍पणियां:

  1. आपके द्वारा बताया गया संस्कृति और प्रकृति का मनोरम संबंध तारीफ़ काबिल है।

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