हमारे भारतीय संस्कृति का मनुष्य के जीवन शैली पर गहरा प्रभाव पड़ता है। संस्कृति मनुष्य को जीवन जीने की कला सिखाती है। संस्कृति मनुष्य को नियमों में बांध कर रखती है ताकि मनुष्य का जीवन खुशहाल एवं सुखमय हो। इसका अर्थ यह नहीं कि संस्कृति मनुष्य को जकड़ कर रखी हुई है । हमारे भारतीय संस्कृति का प्रभाव ऐसा है कि विश्व के लोग प्रभावित हो जाते हैं और बहुत सारे लोग जो विदेश से आते हैं भारतीय संस्कृति के बारे में अध्ययन करते हैं तथा उसे अपना कर अपने मन को शांत करते हैं। मनुष्य में भारतीय संस्कृति का प्रभाव उसके हर क्रिया पर दिखाई पड़ता है जैसे कि उठना, बैठना, किसी से बात करना, अभिवादन आदि। जब किसी बच्चे का जन्म होता है तो उस बच्चे का नामकरण विधिवत होता है तब से लेकर उस मनुष्य के मरने तक बहुत सारे संस्कार होते हैं। जब किसी से मिलते हैं तब अभिवादन में 'नमस्कार ' कहते हैं। यदि देखा जाए तो मनुष्य को मनुष्य के साथ जोड़ने का काम संस्कृति करती है। उदाहरण के तौर पर यदि जब हम किसी अनजान आदमी से मिलते हैं और उसे बड़ी नम्रता के साथ आदर पूर्वक बात करते हैं तो उन्हें अच्छा लगता है और इस तरह पहचान बन जाती है। हमारी संस्कृति में बड़ों का प्रणाम करने का रिवाज है जब हम बड़ों को प्रणाम करते हैं तो बड़ों का हमारे प्रति प्रेम बढ़ जाता है। संस्कृति मनुष्य को संस्कार युक्त बनाती है। संस्कृति कभी भी मनुष्य को यह नहीं सिखाती है कि किसी का अनादर करें या अपमान करें।
मनुष्य को अपनी संस्कृति का पालन करना चाहिए । भारत में मेहमान को देवता समान माना गया है तभी तो कहते हैं " अतिथि देवो भव " । यह सब चीजें बच्चों को सिखाया जाता है ताकि बच्चे संस्कृति को समझ सके। संस्कृति किसी समाज में गहराई तक व्याप्त गुणों के समग्र स्वरूप का नाम है, जो उस समाज के सोचने, विचारने, कार्य करने के स्वरूप में अन्तर्निहित होता है। अंग्रेजी में संस्कृति के लिये 'कल्चर' शब्द प्रयोग किया जाता है जो लैटिन भाषा के ‘कल्ट या कल्टस’ से लिया गया है, जिसका अर्थ है जोतना, विकसित करना या परिष्कृत करना और पूजा करना। संक्षेप में, किसी वस्तु को यहाँ तक संस्कारित और परिष्कृत करना कि इसका अंतिम उत्पाद हमारी प्रशंसा और सम्मान प्राप्त कर सके। यह ठीक उसी तरह है जैसे संस्कृत भाषा का शब्द ‘संस्कृति’। कहा जाता है कि जिस मनुष्य में संस्कृति होता है उसका जीवन सावर जाता है और इसके उल्टा जिस मनुष्य में संस्कृति नहीं पाई जाती उसकी जिंदगी बेकार हो जाती है क्योंकि उसे जीवन जीने की सही कला का पता ही नहीं होता है।
किसी देश की संस्कृति उसकी सम्पूर्ण मानसिक निधि को सूचित करती है। यह किसी खास व्यक्ति के पुरुषार्थ का फल नहीं, जबकि असंख्य ज्ञात तथा अज्ञात व्यक्तियों के भगीरथ प्रयत्न का परिणाम होती है। सब व्यक्ति अपनी सामर्थ्य और योग्यता के अनुसार संस्कृति के निर्माण में सहयोग देते हैं। इसी सहयोग के कारण किसी देश की संस्कृति का निर्माण होता है। किसी भी देश को सुचारू रूप से चलाने के लिए उस देश की संस्कृति का होना अनिवार्य है। जैसे कि हमारे भारतीय संस्कृति है और हमारी भारतीय संस्कृति हजारों वर्षों से चली आ रही है तथा सबसे प्राचीन संस्कृति में से एक है। संस्कृति की तुलना आस्ट्रेलिया के निकट समुद्र में पाई जाने वाली मूँगे की भीमकाय चट्टानों से की जा सकती है। मूँगे के असंख्य कीड़े अपने छोटे घर बनाकर समाप्त हो गए। फिर नए कीड़ों ने घर बनाये, उनका भी अन्त हो गया। इसके बाद उनकी अगली पीढ़ी ने भी यही किया और यह क्रम हजारों वर्ष तक निरन्तर चलता रहा। आज उन सब मूगों के नन्हे-नन्हे घरों ने परस्पर जुड़ते हुए विशाल चट्टानों का रूप धारण कर लिया है। संस्कृति का भी इसी प्रकार धीरे-धीरे निर्माण होता है और उनके निर्माण में हजारों वर्ष लगते हैं। मनुष्य विभिन्न स्थानों पर रहते हुए विशेष प्रकार के सामाजिक वातावरण, संस्थाओं, प्रथाओं, व्यवस्थाओं, धर्म, दर्शन, लिपि, भाषा तथा कलाओं का विकास करके अपनी विशिष्ट संस्कृति का निर्माण करते हैं। भारतीय संस्कृति की रचना भी इसी प्रकार हुई है ।
संस्कृति और सभ्यता दोनों शब्द प्रायः पर्याय के रूप में उपयोग कर दिये जाते हैं। लेकिन दोनों में मौलिक भिन्नता है और दोनों के अर्थ अलग-अलग हैं। संस्कृति का सम्बन्ध व्यक्ति और समाज में निहित संस्कारों से है और उसका निवास उसके मानस में होता है। दूसरी ओर, सभ्यता का क्षेत्र व्यक्ति और समाज के बाह्य स्वरूप से है। 'सभ्य' का शाब्दिक अर्थ होता है, 'जो सभा में सम्मिलित होने योग्य हो'। इसलिए, सभ्यता ऐसे सभ्य व्यक्ति और समाज के सामूहिक स्वरूप को आकार देती है। लेकिन यदि देखा जाए तो संस्कृति तथा सभ्यता दोनों ही सामान ही है ।
सत्य, शिव और सुन्दर ये तीन शाश्वत मूल्य हैं जो संस्कृति से निकट से जुड़े हैं। यह संस्कृति ही है जो हमें दर्शन और धर्म के माध्यम से सत्य के निकट लाती है। यह हमारे जीवन में कलाओं के माध्यम से सौन्दर्य प्रदान करती है और सौन्दर्यनुभूतिपरक मानव बनाती है। यह संस्कृति ही है जो हमें नैतिक मानव बनाती है और दूसरे मानवों के निकट सम्पर्क में लाती है और इसी के साथ हमें प्रेम, सहिष्णुता और शान्ति का पाठ पढ़ाती है। इस तरह संस्कृति मानव समाज का महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह मनुष्य को अच्छा मनुष्य बनाती है।
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मनुष्य को अपनी संस्कृति का पालन करना चाहिए । भारत में मेहमान को देवता समान माना गया है तभी तो कहते हैं " अतिथि देवो भव " । यह सब चीजें बच्चों को सिखाया जाता है ताकि बच्चे संस्कृति को समझ सके। संस्कृति किसी समाज में गहराई तक व्याप्त गुणों के समग्र स्वरूप का नाम है, जो उस समाज के सोचने, विचारने, कार्य करने के स्वरूप में अन्तर्निहित होता है। अंग्रेजी में संस्कृति के लिये 'कल्चर' शब्द प्रयोग किया जाता है जो लैटिन भाषा के ‘कल्ट या कल्टस’ से लिया गया है, जिसका अर्थ है जोतना, विकसित करना या परिष्कृत करना और पूजा करना। संक्षेप में, किसी वस्तु को यहाँ तक संस्कारित और परिष्कृत करना कि इसका अंतिम उत्पाद हमारी प्रशंसा और सम्मान प्राप्त कर सके। यह ठीक उसी तरह है जैसे संस्कृत भाषा का शब्द ‘संस्कृति’। कहा जाता है कि जिस मनुष्य में संस्कृति होता है उसका जीवन सावर जाता है और इसके उल्टा जिस मनुष्य में संस्कृति नहीं पाई जाती उसकी जिंदगी बेकार हो जाती है क्योंकि उसे जीवन जीने की सही कला का पता ही नहीं होता है।
भारतीय संस्कृति का जन्म :
किसी देश की संस्कृति उसकी सम्पूर्ण मानसिक निधि को सूचित करती है। यह किसी खास व्यक्ति के पुरुषार्थ का फल नहीं, जबकि असंख्य ज्ञात तथा अज्ञात व्यक्तियों के भगीरथ प्रयत्न का परिणाम होती है। सब व्यक्ति अपनी सामर्थ्य और योग्यता के अनुसार संस्कृति के निर्माण में सहयोग देते हैं। इसी सहयोग के कारण किसी देश की संस्कृति का निर्माण होता है। किसी भी देश को सुचारू रूप से चलाने के लिए उस देश की संस्कृति का होना अनिवार्य है। जैसे कि हमारे भारतीय संस्कृति है और हमारी भारतीय संस्कृति हजारों वर्षों से चली आ रही है तथा सबसे प्राचीन संस्कृति में से एक है। संस्कृति की तुलना आस्ट्रेलिया के निकट समुद्र में पाई जाने वाली मूँगे की भीमकाय चट्टानों से की जा सकती है। मूँगे के असंख्य कीड़े अपने छोटे घर बनाकर समाप्त हो गए। फिर नए कीड़ों ने घर बनाये, उनका भी अन्त हो गया। इसके बाद उनकी अगली पीढ़ी ने भी यही किया और यह क्रम हजारों वर्ष तक निरन्तर चलता रहा। आज उन सब मूगों के नन्हे-नन्हे घरों ने परस्पर जुड़ते हुए विशाल चट्टानों का रूप धारण कर लिया है। संस्कृति का भी इसी प्रकार धीरे-धीरे निर्माण होता है और उनके निर्माण में हजारों वर्ष लगते हैं। मनुष्य विभिन्न स्थानों पर रहते हुए विशेष प्रकार के सामाजिक वातावरण, संस्थाओं, प्रथाओं, व्यवस्थाओं, धर्म, दर्शन, लिपि, भाषा तथा कलाओं का विकास करके अपनी विशिष्ट संस्कृति का निर्माण करते हैं। भारतीय संस्कृति की रचना भी इसी प्रकार हुई है ।
संस्कृति और सभ्यता का क्षेत्र
संस्कृति और सभ्यता दोनों शब्द प्रायः पर्याय के रूप में उपयोग कर दिये जाते हैं। लेकिन दोनों में मौलिक भिन्नता है और दोनों के अर्थ अलग-अलग हैं। संस्कृति का सम्बन्ध व्यक्ति और समाज में निहित संस्कारों से है और उसका निवास उसके मानस में होता है। दूसरी ओर, सभ्यता का क्षेत्र व्यक्ति और समाज के बाह्य स्वरूप से है। 'सभ्य' का शाब्दिक अर्थ होता है, 'जो सभा में सम्मिलित होने योग्य हो'। इसलिए, सभ्यता ऐसे सभ्य व्यक्ति और समाज के सामूहिक स्वरूप को आकार देती है। लेकिन यदि देखा जाए तो संस्कृति तथा सभ्यता दोनों ही सामान ही है ।
सत्य, शिव और सुन्दर ये तीन शाश्वत मूल्य हैं जो संस्कृति से निकट से जुड़े हैं। यह संस्कृति ही है जो हमें दर्शन और धर्म के माध्यम से सत्य के निकट लाती है। यह हमारे जीवन में कलाओं के माध्यम से सौन्दर्य प्रदान करती है और सौन्दर्यनुभूतिपरक मानव बनाती है। यह संस्कृति ही है जो हमें नैतिक मानव बनाती है और दूसरे मानवों के निकट सम्पर्क में लाती है और इसी के साथ हमें प्रेम, सहिष्णुता और शान्ति का पाठ पढ़ाती है। इस तरह संस्कृति मानव समाज का महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह मनुष्य को अच्छा मनुष्य बनाती है।
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