* कोरोना वायरस से लडने के लिये मनुष्य का रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होना चाहिये । वैज्ञानिक दृष्टि से यदि रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत रहा तो मनुष्य कोरोना को मात दे सकता है । रोग प्रतिरोधक क्षमता का अर्थ बिमारीयो से लडने कि क्षमता से है । इसे हम दैनिक जीवन मे उपयोग करने वाले दैनिक वस्तुओ से कर सकते है जैसे कि हल्दी, तुलसी,लहसुन,खाट्टे फल, आंवला, नीबू , लौंग,अदरक, दालचीनी, काली मिर्च, सुखी अदरक आदि । इन सबके बारे मे हमारे भारतीय ज्ञान आयुर्वेद मे बताया गया है । चुंकि आयुर्वेद एक भारतीय आयुर्विज्ञान है । रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढाने का ऐसा अर्थ नही है कि यही कोरोना वायरस से लडने का ईलाज है या कोई दवाई है । हम यहाँ पर केवल यह बताने का प्रयाश कर रहे है कि जब हमारे पास इस बिमारी से लडने के लिये कोई भी दवाई या वैक्सिन नही है तब की स्थिति मे हम आयुर्वेद को अपना कर आयुर्वेद के जानकार के बताये अनुसार अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढा सकते है । भारतीय विद्वान बताते है कि हम व्यायाम की सहायता से भी अपने आप को कोरोना वायरस से बचने के लिये शरीर को मजबूत बना सकते है । जब हम आयुर्वेद के महत्व के बारे मे पढ रहे है तब उनके बारे मे जानना भी बहुत जरूरी है ।
आयुर्वेद (आयुः + वेद =
आयुर्वेद) पूरे विश्व में प्राचीनतम चिकित्सा प्रणालियों में से
एक है। यह विज्ञान, कला और दर्शन का एक मिश्रण है । ‘आयुर्वेद’ नाम का अर्थ है, ‘जीवन से सम्बन्धित ज्ञान’। आयुर्वेद, भारतीय आयुर्विज्ञान है। आयुर्विज्ञान, विज्ञान की वह शाखा है जिसका सम्बन्ध मानव शरीर को निरोग
रखने, रोग हो जाने पर रोग से मुक्त करने अथवा उसका
शमन करने तथा आयु बढ़ाने से है। आयुर्वेद का मानव जीवन में गहरा प्रभाव पड़ता है।
“हिताहितं सुखं दुःखमायुस्तस्य हिताहितम्।
मानं च तच्च
यत्रोक्तमायुर्वेदः स उच्यते॥“ -(चरक संहिता १/४०)
आयुर्वेद के ग्रन्थ तीन
दोषों (त्रिदोष = वात, पित्त, कफ) के असंतुलन को रोग का कारण मानते हैं और समदोष की
स्थिति को आरोग्य। इसी प्रकार सम्पूर्ण आयुर्वैदिक चिकित्सा के आठ अंग माने गए हैं
(अष्टांग वैद्यक), ये आठ अंग ये हैं- कायचिकित्सा, शल्यतन्त्र, शालक्यतन्त्र, कौमारभृत्य, अगदतन्त्र, भूतविद्या, रसायनतन्त्र और वाजीकरण।
आयुर्वेद के ऐतिहासिक ज्ञान के सन्दर्भ में, चरक मत के अनुसार, आयुर्वेद का ज्ञान सर्वप्रथम ब्रह्मा से प्रजापति ने, प्रजापति से दोनों अश्विनी कुमारों ने, उनसे इन्द्र ने और इन्द्र से भारद्वाज ने
आयुर्वेद का अध्ययन किया। च्यवन ऋषि का कार्यकाल भी
अश्विनी कुमारों का समकालीन माना गया है। आयुर्वेद के विकास में ऋषि च्यवन का
अतिमहत्त्वपूर्ण योगदान है। फिर भारद्वाज ने आयुर्वेद के प्रभाव से दीर्घ सुखी और
आरोग्य जीवन प्राप्त कर अन्य ऋषियों में उसका प्रचार किया। तदनन्तर पुनर्वसु
आत्रेय ने अग्निवेश, भेल, जतू, पाराशर, हारीत और क्षारपाणि नामक
छः शिष्यों को आयुर्वेद का उपदेश दिया। इन छः शिष्यों में सबसे अधिक बुद्धिमान
अग्निवेश ने सर्वप्रथम एक संहिता (अग्निवेश तंत्र) का निर्माण किया- जिसका
प्रतिसंस्कार बाद में चरक ने किया और उसका नाम चरकसंहिता पड़ा, जो आयुर्वेद का आधार-स्तम्भ है। इस तरह हमारी भारतीय प्राचीनतम ज्ञान का सुंदर उदाहरण
आयुर्वेद है। आयुर्वेद हमारे भारत का प्राचीनतम तत्व एवम् अभिन्न अंग है इसी
कारणवस इसके संबंध में जानकारी दी जा रही है। आइये कुछ चीजो के बारे में बात करते
है जैसे कि हमारे भारत में हल्दी का उपयोग खाने के सामान में अत्यधिक मात्रा में
की जाती है। हल्दी का आयुर्वेद से सीधा नाता है।
रसोई की शान होने के साथ-साथ हल्दी कई चामत्कारिक औषधीय गुणों से परिपूर्ण
है। हल्दी गुमचोट के इलाज में तो सहायक है ही साथ ही कफ-खांसी सहित अनेक बीमारियों
के इलाज़ में काम आती है। इसके अलावा हल्दी सौन्दर्यवर्धक भी मानी जाती है और
प्रचीनकाल से ही इसका उपयोग रूप को निखारने के लिए किया जाता रहा है। वर्तमान समय
में हल्दी का प्रयोग उबटन से लेकर विभिन्न तरह की क्रीमों में भी किया जा है। इस
तरह इसका स्वास्थ्य को तंदरुस्त बनाए रखने के लिए अत्यधिक आवश्यक है।
भारत में आंवला का महत्व प्राचीन काल से ही है । भारतीय विद्वान कहते है कि आंवला के सेवन से रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है। चूंकि हम जानते है कि आंवला, निबू में विटामिन सी प्रचुर मात्रा होती है। इसका उपयोग बहुत सारे रोगों के निवारण के लिए भी किया जाता है। अतः आंवला के सेवन से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
लहसुन कई स्वास्थ्य
लाभ प्रदान करने के लिए जानी जाती है। लहसुन ब्लड प्रेशर को प्रबंधित करने और
धमनियों को सख्त होने से रोकने में मदद कर सकती है. लहसुन को पहले ही फ्लू और
इंफेक्शन से लड़ने के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा है। आप भी लहसुन का सेवन कर
प्राकृतिक तरीके से रोग प्रतिरोधक क्षमता को बेहतर कर सकते हैं।
अदरक में एंटी बैक्टीरियल और एंटीऑक्सीडेंट
गुण पाए जाते हैं, जो कई बीमारियों से
बचाने में मददगार हैं। साथ ही अदरक का उपयोग रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में
भी किया जाता है।
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आयुर्वेद के बारे में बताने के लिए आपका धन्यवाद। यह ज्ञानदायक ब्लॉग है।
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