भारतीय संस्कृति
के बारे मे जब हम देखते है तो हमे यह पता चलता है कि भारतीय
संस्कृति की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता यह भी है कि हज़ारों वर्षों के बाद भी हमारी
भारतीय संस्कृति आज भी अपने मूल स्वरूप में जीवित है और विश्व का आकर्षक बिंदु बना
हुआ है जबकि मिस्र, असीरिया, यूनान और रोम जैसे
और अन्य देशो की संस्कृतिया अपने मूल स्वरूप को लगभग विस्मृत कर चुकी हैं। भारत
में नदियों, वट, पीपल जैसे वृक्षों, सूर्य तथा अन्य
प्राकृतिक देवी – देवताओं
की पूजा अर्चना का क्रम शताब्दियों से चला आ रहा है। देवताओं की मान्यता, हवन और पूजा-पाठ की
पद्धतियों की निरन्तरता भी आज तक अप्रभावित रही हैं। वेदों और वैदिक धर्म में
करोड़ों भारतीयों की आस्था और विश्वास आज भी उतना ही है, जितना हज़ारों वर्ष
पूर्व था। यह सब चिजे भारतीय संस्कृति
की महानता का गुनगान करती है। गीता
और उपनिषदों के सन्देश हज़ारों साल से हमारी प्रेरणा और कर्म का आधार रहे हैं।
किंचित परिवर्तनों के बावजूद भारतीय संस्कृति के आधारभूत तत्त्वों, जीवन मूल्यों और वचन
पद्धति में एक ऐसी निरन्तरता रही है, कि आज भी करोड़ों भारतीय स्वयं को उन
मूल्यों एवं चिन्तन प्रणाली से जुड़ा हुआ महसूस करते हैं और इससे प्रेरणा प्राप्त
करते हैं और यही प्रेरणा हमारे देेश के विकाश
की आधारशीला हैं।
भौगोलिक दृष्टि से भारत एक विविधताओं वाला देश है, फिर भी सांस्कृतिक रूप से एक इकाई के रूप में इसका अस्तित्व प्राचीनकाल से बना हुआ है। हमारे इस विशाल देश में अनेक विभिन्नताओं के बाद भी भारत की एक अलग ही सांस्कृतिक सत्ता रही है। हिमालय सम्पूर्ण देश के गौरव का प्रतीक रहा है, तो गंगा – यमुना और नर्मदा जैसी नदियों की स्तुति यहाँ के लोग प्राचीनकाल से करते आ रहे हैं। राम, कृष्ण और शिव की आराधना यहाँ सदियों से की जाती रही है। भारत की सभी भाषाओं में इन देवताओं पर आधारित साहित्य का सृजन हुआ है। उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम तक सम्पूर्ण भारत में जन्म, विवाह और मृत्यु के संस्कार एक समान प्रचलित हैं। विभिन्न रीति-रिवाज, आचार-व्यवहार और तीज – त्यौहारों में भी समानता है। भाषाओं की विविधता अवश्य है फिर भी संगीत, नृत्य और नाट्य के मौलिक स्वरूपों में आश्चर्यजनक समानता है। संगीत के सात स्वर और नृत्य के त्रिताल सम्पूर्ण भारत में समान रूप से प्रचलित हैं। भारत अनेक धर्मों, सम्प्रदायों, मतों और पृथक आस्थाओं एवं विश्वासों का महादेश है, तथापि इसका सांस्कृतिक समुच्चय और अनेकता में एकता का स्वरूप संसार के अन्य देशों के लिए विस्मय का विषय रहा है। भारत का पर्वतीय भू-भाग, जिसकी सीमा पूर्व में ब्रह्मपुत्रऔर पश्चिम में सिन्धु नदियों तक विस्तृत है। इसके साथ ही गंगा, यमुना, सतलुज की उपजाऊ कृषि भूमि, विन्ध्य और दक्षिण का वनों से आच्छादित पठारी भू-भाग, पश्चिम में थार का रेगिस्तान, दक्षिण का तटीय प्रदेश तथा पूर्व में असम और मेघालय का अतिवृष्टि का सुरम्य क्षेत्र सम्मिलित है। इस भौगोलिक विभिन्नता के अतिरिक्त इस देश में आर्थिक और सामाजिक भिन्नता भी पर्याप्त रूप से विद्यमान है। वस्तुत: इन भिन्नताओं के कारण ही भारत में अनेक सांस्कृतिक उपधाराएँ विकसित होकर पल्लवित और पुष्पित हुई हैं। यही हमारी भारतीय संस्कृति की विशालता है। जब हमारी संस्कृति के बारे मे अध्ययन किया जाता है तब बहुत सारी रोचक तथ्यो के बारे मे पता चलता है।
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पुरापाषाण से लेकर आधुनिक तक का यह विस्तृत वर्णन मंत्रमुग्ध कर कर देता है मानो पढ़ते ही रहे।
जवाब देंहटाएंVery beautiful
आपकी भावपूर्ण प्रतिक्रिया के लिये धन्यवाद योगेंद्र जी ।
जवाब देंहटाएंभगोलिक से संस्कृतिक बिंदुओं पर बहोत गहराई से अध्ययन किया गया है। काबिलेतारिफ
जवाब देंहटाएंरवि जी, आपको भाव व्यक्त करने के लिए धन्यवाद ।
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