सोमनाथ मंदिर हमारे भारत देश के गुजरात राज्य में स्थित है। यह मंदिर गुजरात के पश्चिमी छोर पर स्थित है। यह एक प्राचीन मंदिर है जो हिंदुओं का आस्था का केंद्र है। यह मंदिर प्राचीन तथा ऐतिहासिक सूर्य मंदिर है। 12 ज्योतिर्लिंगों में से प्रथम ज्योतिर्लिंग इसी सोमनाथ मंदिर को कहा जाता है। इस तरह सोमनाथ मंदिर हिंदुओं की आस्था का मुख्य केंद्र है। यह मंदिर भारत के गुजरात राज्य के पश्चिमी छोर के सौराष्ट्र क्षेत्र के वेरावल बंदरगाह में स्थित है। ऋग्वेद के अनुसार इस सोमनाथ मंदिर का निर्माण स्वयं चंद्रदेव ने की थी। चंद्र देव का एक नाम सोम भी है तथा चंद्रदेव ने भगवान शिव जी को पूज्य तथा अपना नाथ मानकर इसी समुद्र के किनारे तपस्या की थी। इस तरह मंदिर का नाम सोमनाथ पड़ा। सोमनाथ मंदिर समुद्र के किनारे स्थित है। महाशिवरात्रि के दिन बड़े ही धूमधाम के साथ भगवान शिव जी की पूजा अर्चना की जाती है तथा यहां इसे एक त्यौहार की तरह मनाया जाता है।
सोमनाथ मंदिर का महत्व प्राचीन काल से ही रहा है । इस मंदिर का वास्तु कला ऐसा था कि सब लोग देखकर आश्चर्यचकित रह जाते थे। कहते हैं कि ज्योतिर्लिंग हवा में स्थित था। यह सब देख कर उस समय के शासक प्राय: मुस्लिम शासक मंदिर को तुड़वा दिया। ऐसा प्रयास बहुत बार किया गया। इस प्रकार यह मंदिर कई बार टूटा और कई बार इसका पुनर्निर्माण किया गया ।
सबसे पहले इस मंदिर के उल्लेखानुसार ईसा के पूर्व यह अस्तित्व में था। इसी जगह पर द्वितीय बार मंदिर का पुनर्निर्माण 649 ईस्वी में वैल्लभी के मैत्रिक राजाओं ने किया। पहली बार इस मंदिर को 725 ईस्वी में सिन्ध के मुस्लिम सूबेदार अल जुनैद ने तुड़वा दिया था । उसके बाद प्रतिहार राजा नागभट्ट ने 815 ईस्वी में इस मंदिर का पुनर्निर्माण का कार्य करवाया।
समय बीतता गया फिर महमूद गजनवी ने सन् 1024 में अपने लगभग 5,000 साथियों के साथ इस मंदिर पर हमला कर किया । इस मंदिर की संपत्ति को लूट लिए तथा इसे नष्ट कर दिया। तब इस गंभीर परिस्थिति को देखकर इस प्राचीन मंदिर की रक्षा के लिए निहत्थे हजारों लोगो ने विरोध किए तथा वे लोग मारे गए। ये वे लोग थे, जो पूजा कर रहे थे या मंदिर के अंदर दर्शन लाभ ले रहे थे और जो गांव के लोग मंदिर की रक्षा के लिए निहत्थे ही दौड़ पड़े थे। इस तरह सोमनाथ मंदिर की काफी क्षति हुई थी।महमूद के मंदिर तोड़ने और लूटने के बाद गुजरात के राजा भीमदेव और मालवा के राजा भोज ने इसका पुनर्निर्माण कराया। 1093 में सिद्धराज जयसिंह ने भी मंदिर निर्माण में सहयोग दिया। 1168 में विजयेश्वर कुमारपाल और सौराष्ट्र के राजा खंगार ने भी सोमनाथ मंदिर के सौन्दर्यीकरण में योगदान किया था।
सन् 1297 में जब दिल्ली सल्तनत के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति नुसरत खां ने गुजरात पर हमला किया तो उसने सोमनाथ मंदिर को दुबारा तोड़ दिया और सारी धन-संपदा लूटकर ले गया। मंदिर को फिर से हिन्दू राजाओं ने बनवाया। लेकिन सन् 1395 में गुजरात के सुल्तान मुजफ्फरशाह ने मंदिर को फिर से तुड़वाकर सारा चढ़ावा लूट लिया। इसके बाद 1412 में उसके पुत्र अहमद शाह ने भी यही किया। मुस्लिम शासकों के द्वारा सोमनाथ मंदिर को तुड़वाने का सिलसिला जारी था तथा हिंदू राजा इन्हें बनाने का प्रयास किए।
उसके बाद मुस्लिम क्रूर बादशाह औरंगजेब के काल में सोमनाथ मंदिर को दो बार तोड़ा गया- पहली बार 1665 ईस्वी में और दूसरी बार 1706 ईस्वी में। 1665 में मंदिर तुड़वाने के बाद जब औरंगजेब ने देखा कि हिन्दू उस स्थान पर अभी भी पूजा-अर्चना करने आते हैं तो उसने वहां एक सैन्य टुकड़ी भेजकर कत्लेआम करवाया। जब भारत का एक बड़ा हिस्सा मराठों के अधिकार में आ गया तब 1783 में इंदौर की रानी अहिल्याबाई द्वारा मूल मंदिर से कुछ ही दूरी पर पूजा-अर्चना के लिए सोमनाथ महादेव का एक और मंदिर बनवाया गया। इस तरह हिंदू शासकों ने मंदिर का पुनर्निर्माण तथा हिंदू आस्था को बरकरार रखने का अटूट प्रयास किया और इन्हीं सब प्रयासों के कारण ही अभी हम वर्तमान समय में सोमनाथ मंदिर का दर्शन कर पाते हैं ।
भारत की आजादी के बाद सरदार वल्लभभाई पटेल ने समुद्र का जल लेकर नए मंदिर के निर्माण का संकल्प लिया। उनके संकल्प के बाद 1950 में मंदिर का पुनर्निर्माण हुआ। इस तरह मंदिर का 6 बार टूटने के बाद 7वीं बार इस मंदिर को कैलाश महामेरू प्रासाद शैली में बनाया गया। इसके निर्माण कार्य से सरदार वल्लभभाई पटेल भी जुड़े रह चुके हैं। इस समय जो मंदिर खड़ा है उसे भारत के गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने बनवाया और दिसंबर 1995 को भारत के राष्ट्रपति शंकरदयाल शर्मा ने इसे राष्ट्र को समर्पित किया।
सोमनाथ मंदिर अरब सागर के तट पर स्थित है। सोमनाथ मंदिर में जाकर भगवान शिव की पूजा करने पर सारे पाप धुल जाते हैं। भोलेनाथ और माता पार्वती की कृपा प्राप्त होती है। सोमनाथ मंदिर के ज्योतिर्लिंग की पूजा करने से जीवन सुखद हो जाता है, मन को शांति प्राप्त होती है।यह मंदिर गर्भगृह, सभामंडप और नृत्यमंडप- तीन प्रमुख भागों में विभाजित है। इसका 150 फुट ऊंचा शिखर है। इसके शिखर पर स्थित कलश का भार लगभग दस टन है और इसकी ध्वजा लगभग 27 फुट ऊंची है। इसके अबाधित समुद्री मार्ग- त्रिष्टांभ के विषय में ऐसा माना जाता है कि यह समुद्री मार्ग परोक्ष रूप से दक्षिणी ध्रुव में समाप्त होता है। यह हमारे प्राचीन ज्ञान का अद्भुत साक्ष्य माना जाता है। इस तरह सोमनाथ मंदिर हिंदुओं की आस्था का केंद्र है। यहां चंद्रदेव में तपस्या की थी तथा शिव जी और माता पार्वती ज्योतिर्लिंग के रूप में यहां विराजमान हैं। जो भी भक्त यहां आकर पूजा अर्चना करते हैं उनकी मनोकामना पूर्ण होती है तथा मन की शांति प्राप्त होती है। यहां आकर पूजा करने से सारे पाप धुल जाते हैं तथा जीवन सफल हो जाता है। इस मंदिर का महत्व इसलिए और बढ़ जाता है क्योंकि यह 12 ज्योतिर्लिंगों में से प्रथम ज्योतिर्लिंग माना जाता है। यह मंदिर विश्व प्रसिद्ध है तथा पूरे विश्व भर से यहां घूमने तथा भगवान शिव का दर्शन करने आते हैं। महाशिवरात्रि के दिन पर्व के रूप में भगवान शिव जी की पूजा अर्चना की जाती है तथा बड़े धूमधाम के साथ यह पर्व मनाया जाता है।
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सोमनाथ मंदिर का इतिहास :
सोमनाथ मंदिर का महत्व प्राचीन काल से ही रहा है । इस मंदिर का वास्तु कला ऐसा था कि सब लोग देखकर आश्चर्यचकित रह जाते थे। कहते हैं कि ज्योतिर्लिंग हवा में स्थित था। यह सब देख कर उस समय के शासक प्राय: मुस्लिम शासक मंदिर को तुड़वा दिया। ऐसा प्रयास बहुत बार किया गया। इस प्रकार यह मंदिर कई बार टूटा और कई बार इसका पुनर्निर्माण किया गया ।
सबसे पहले इस मंदिर के उल्लेखानुसार ईसा के पूर्व यह अस्तित्व में था। इसी जगह पर द्वितीय बार मंदिर का पुनर्निर्माण 649 ईस्वी में वैल्लभी के मैत्रिक राजाओं ने किया। पहली बार इस मंदिर को 725 ईस्वी में सिन्ध के मुस्लिम सूबेदार अल जुनैद ने तुड़वा दिया था । उसके बाद प्रतिहार राजा नागभट्ट ने 815 ईस्वी में इस मंदिर का पुनर्निर्माण का कार्य करवाया।
समय बीतता गया फिर महमूद गजनवी ने सन् 1024 में अपने लगभग 5,000 साथियों के साथ इस मंदिर पर हमला कर किया । इस मंदिर की संपत्ति को लूट लिए तथा इसे नष्ट कर दिया। तब इस गंभीर परिस्थिति को देखकर इस प्राचीन मंदिर की रक्षा के लिए निहत्थे हजारों लोगो ने विरोध किए तथा वे लोग मारे गए। ये वे लोग थे, जो पूजा कर रहे थे या मंदिर के अंदर दर्शन लाभ ले रहे थे और जो गांव के लोग मंदिर की रक्षा के लिए निहत्थे ही दौड़ पड़े थे। इस तरह सोमनाथ मंदिर की काफी क्षति हुई थी।महमूद के मंदिर तोड़ने और लूटने के बाद गुजरात के राजा भीमदेव और मालवा के राजा भोज ने इसका पुनर्निर्माण कराया। 1093 में सिद्धराज जयसिंह ने भी मंदिर निर्माण में सहयोग दिया। 1168 में विजयेश्वर कुमारपाल और सौराष्ट्र के राजा खंगार ने भी सोमनाथ मंदिर के सौन्दर्यीकरण में योगदान किया था।
सन् 1297 में जब दिल्ली सल्तनत के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति नुसरत खां ने गुजरात पर हमला किया तो उसने सोमनाथ मंदिर को दुबारा तोड़ दिया और सारी धन-संपदा लूटकर ले गया। मंदिर को फिर से हिन्दू राजाओं ने बनवाया। लेकिन सन् 1395 में गुजरात के सुल्तान मुजफ्फरशाह ने मंदिर को फिर से तुड़वाकर सारा चढ़ावा लूट लिया। इसके बाद 1412 में उसके पुत्र अहमद शाह ने भी यही किया। मुस्लिम शासकों के द्वारा सोमनाथ मंदिर को तुड़वाने का सिलसिला जारी था तथा हिंदू राजा इन्हें बनाने का प्रयास किए।
उसके बाद मुस्लिम क्रूर बादशाह औरंगजेब के काल में सोमनाथ मंदिर को दो बार तोड़ा गया- पहली बार 1665 ईस्वी में और दूसरी बार 1706 ईस्वी में। 1665 में मंदिर तुड़वाने के बाद जब औरंगजेब ने देखा कि हिन्दू उस स्थान पर अभी भी पूजा-अर्चना करने आते हैं तो उसने वहां एक सैन्य टुकड़ी भेजकर कत्लेआम करवाया। जब भारत का एक बड़ा हिस्सा मराठों के अधिकार में आ गया तब 1783 में इंदौर की रानी अहिल्याबाई द्वारा मूल मंदिर से कुछ ही दूरी पर पूजा-अर्चना के लिए सोमनाथ महादेव का एक और मंदिर बनवाया गया। इस तरह हिंदू शासकों ने मंदिर का पुनर्निर्माण तथा हिंदू आस्था को बरकरार रखने का अटूट प्रयास किया और इन्हीं सब प्रयासों के कारण ही अभी हम वर्तमान समय में सोमनाथ मंदिर का दर्शन कर पाते हैं ।
भारत की आजादी के बाद सरदार वल्लभभाई पटेल ने समुद्र का जल लेकर नए मंदिर के निर्माण का संकल्प लिया। उनके संकल्प के बाद 1950 में मंदिर का पुनर्निर्माण हुआ। इस तरह मंदिर का 6 बार टूटने के बाद 7वीं बार इस मंदिर को कैलाश महामेरू प्रासाद शैली में बनाया गया। इसके निर्माण कार्य से सरदार वल्लभभाई पटेल भी जुड़े रह चुके हैं। इस समय जो मंदिर खड़ा है उसे भारत के गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने बनवाया और दिसंबर 1995 को भारत के राष्ट्रपति शंकरदयाल शर्मा ने इसे राष्ट्र को समर्पित किया।
सोमनाथ मंदिर का महत्व
सोमनाथ मंदिर अरब सागर के तट पर स्थित है। सोमनाथ मंदिर में जाकर भगवान शिव की पूजा करने पर सारे पाप धुल जाते हैं। भोलेनाथ और माता पार्वती की कृपा प्राप्त होती है। सोमनाथ मंदिर के ज्योतिर्लिंग की पूजा करने से जीवन सुखद हो जाता है, मन को शांति प्राप्त होती है।यह मंदिर गर्भगृह, सभामंडप और नृत्यमंडप- तीन प्रमुख भागों में विभाजित है। इसका 150 फुट ऊंचा शिखर है। इसके शिखर पर स्थित कलश का भार लगभग दस टन है और इसकी ध्वजा लगभग 27 फुट ऊंची है। इसके अबाधित समुद्री मार्ग- त्रिष्टांभ के विषय में ऐसा माना जाता है कि यह समुद्री मार्ग परोक्ष रूप से दक्षिणी ध्रुव में समाप्त होता है। यह हमारे प्राचीन ज्ञान का अद्भुत साक्ष्य माना जाता है। इस तरह सोमनाथ मंदिर हिंदुओं की आस्था का केंद्र है। यहां चंद्रदेव में तपस्या की थी तथा शिव जी और माता पार्वती ज्योतिर्लिंग के रूप में यहां विराजमान हैं। जो भी भक्त यहां आकर पूजा अर्चना करते हैं उनकी मनोकामना पूर्ण होती है तथा मन की शांति प्राप्त होती है। यहां आकर पूजा करने से सारे पाप धुल जाते हैं तथा जीवन सफल हो जाता है। इस मंदिर का महत्व इसलिए और बढ़ जाता है क्योंकि यह 12 ज्योतिर्लिंगों में से प्रथम ज्योतिर्लिंग माना जाता है। यह मंदिर विश्व प्रसिद्ध है तथा पूरे विश्व भर से यहां घूमने तथा भगवान शिव का दर्शन करने आते हैं। महाशिवरात्रि के दिन पर्व के रूप में भगवान शिव जी की पूजा अर्चना की जाती है तथा बड़े धूमधाम के साथ यह पर्व मनाया जाता है।
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Ancient Somnath temple. Your are doing good job.
जवाब देंहटाएंThankyou very much for your comment
हटाएंVery nice. detail information about temple from ancient to morden. Superb exploration
जवाब देंहटाएंThanks for absorbing my post's content and do comment. Again thanks
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