हिंदू कैलेंडर के अनुसार पांचवा माह श्रावण मास यानि सावन का महीना होता है। श्रावण मास का आगमन आषाढ़ मास के बाद होता है। सावन का महीना वर्षा ऋतु के समय आती है इसलिए यह माह हरियाली भरी होती है। हिंदुओं के लिए यह माह विशेष होता है क्योंकि पूरे सावन माह भर भगवान शिव की पूजा की जाती है। वैसे तो पूरा सावन का महीना ही भगवान शिवजी के लिए विशेष होता है लेकिन सावन के महीने का हर सोमवार और भी ज्यादा विशेष होता है। सावन महीने के प्रत्येक सोमवार भगवान शिव जी की पूजा अर्चना की जाती है। हिंदू धर्म में सावन माह को बड़े धूमधाम से मनाया जाता है तथा भगवान शिव जी की पूजा पाठ किया जाता है। इस माह में सभी श्रद्धालु गण कांवड़ यात्रा निकालते हैं तथा लंबे-लंबे दूर तक पैदल चलकर बम भोले या हर हर महादेव का नारा लगाते हुए कांवड़ यात्रा को संपन्न करते हैं। चूंकि यह माह भगवान शिव के लिए विशेष होता है इसलिए सभी श्रद्धालु गण भगवान शिव जी को प्रसन्न करने के लिए प्रत्येक सोमवार उपवास रखते हैं तथा बेलपत्र, दूध, शहद, दही, घी, पानी आदि सामग्री को चढ़ाते है।
कांवड़ यात्रा :
सावन माह की शुरुआत होने के बाद देशभर से कांवड़ तथा झंडा यात्रा का शुभारंभ भी हो जाता है। हर साल सावन के महीने भर देशभर में कई प्रसिद्ध श्रावणी मेलों और कांवड़ यात्रा का आयोजन किया जाता है। हर वर्ष इस मास की शुरुआत होते ही कोने-कोने से सैकड़ों शिव भक्त आस्था और उत्साह पूर्वक कांवड़ यात्राएं निकालते हैं। भारत में कांवड़ यात्रा वर्षों पुरानी एक विशेष धार्मिक परंपरा है, जो हर साल हर्षोउल्लास के साथ मनाई जाती है। इस दौरान भगवान शिव के भक्त, जिन्हे कांवडि़ए कहा गया है, वो मां गंगा और नर्मदा के तट से अपनी कांवड़ में पवित्र जल भरते हैं, और फिर बाद में उसी पवित्र जल से शिवालयों के शिवलिंग का जलाभिषेक करते हुए, महादेव को प्रसन्न करते हैं। इस तरह की शिव भक्त हजारों किलोमीटर चलकर कावड़ यात्रा को संपन्न करते हैं। कहा जाता है कि सावन का महीना भगवान शिव के लिए अति प्रिय होता है तथा यह महीना भगवान शिव जी को आसानी से प्रसन्न करने का माह होता है इसलिए सभी शिव भक्त भगवान शिव जी को प्रसन्न करने का प्रयास करते है उसमें कावड़ यात्रा भी सम्मिलित है।
कावड़ यात्रा का इतिहास :
हमारे भारत के विद्वानों के अनुसार यह मानना है कि सर्वप्रथम भगवान परशुराम ने उत्तर प्रदेश के बागपत के पास स्थित ‘पुरा महादेव’ का कांवड़ से गंगाजल लाकर जलाभिषेक किया था। परशुराम इस प्रचीन शिवलिंग का जलाभिषेक करने के लिए गढ़मुक्तेश्वर से गंगा जी का जल लाए थे। यह सर्वप्रथम कांवड़ यात्रा था जिसे आज भी सभी शिव भक्तों के द्वारा किया जाता है। आज भी इस परंपरा का पालन करते हुए सावन के महीने में गढ़मुक्तेश्वर से जल लाकर लाखों लोग 'पुरा महादेव' का जलाभिषेक करते हैं। गढ़मुक्तेश्वर का वर्तमान नाम ब्रजघाट है । इस तरह है यदि देखा जाए तो कांवड़ यात्रा हमारे प्राचीन काल से चली आ रही है। इसके साथ साथ हमारे विद्वान यह भी बताते हैं कि प्रभु श्री राम ने भी कावड़ यात्रा करके भगवान शिव जी को जलाभिषेक किए थे । रावण भी कांवड़ यात्रा करके भगवान शिव जी को जलाभिषेक किए थे। कुछ मान्यताओं के अनुसार यह भी कहा जाता है कि श्रवण कुमार ने भी कावड़ यात्रा की थी।
महादेव को भोलेनाथ भी कहा जाता है क्योंकि महादेव को केवल श्रद्धा पूर्वक जल चढ़ाकर भी प्रसन्न किया जा सकता है। लेकिन जब पूजा विधि की बात आती है तब हमें सामान्य विधि के तौर पर हर सावन सोमवार को सुबह उठकर नहा धोकर स्वच्छ मन से पूजा करना चाहिए। पूजा स्थल को स्वच्छ रखें तथा गंगाजल का उपयोग करके उस जगह को पवित्र बना ले। भगवान शिव जी को श्रद्धा पूर्वक सुपारी, पंच अमृत, नारियल, बेल पत्र, धतूरा, फल, फूल आदि अर्पित कर सकते हैं। दीपक जलाकर महादेव को ध्यान लगाएं। शिव पुराण, शिव चालीसा, महामृत्युंजय मंत्र आदि का पाठ कर सकते हैं ।
श्रावण माह भगवान शिव जी का अत्यंत प्रिय मास है। इस मास में शिव की भक्ति करने से उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है। उनके पूजन के लिए अलग-अलग विधान भी है। भक्त जैसे चाहे उनका अपनी कामनाओं के लिए उनका पूजन कर सकता है। सावन के महीने में प्रतिदिन श्री शिवमहापुराण व शिव स्तोस्त्रों का विधिपूर्वक पाठ करके दुध, गंगा जल, बेलपत्र, फलादि सहित शिवलिंग का पूजन करना चाहिए। इसके साथ ही इस मास में “ऊँ नम: शिवाय:” मंत्र का जाप करते हुए शिव पूजन करना अत्यंत ही लाभकारी माना जाता है।
सावन माह में काशी में सावन मेला का आयोजन किया जाता है। काशी के विश्वनाथ के दर्शन के लिए भारत के कोने-कोने से लोग आते हैं। यहां कांवड़ियों का भी भीड़ बहुत ज्यादा होता है ।
हरिद्वार में सबसे बड़ा सावन मेला का आयोजन किया जाता है। सावन माह के शुरू होते ही यहां कांवड़ियों का आना चालू हो जाता है। यहां पर भारत के कोने कोने से भगवान शिव के दर्शन के लिए आते हैं तथा पूजा पाठ करते हैं। जितने भी कांवड़िया यहां आते हैं वह गंगा जल को लेकर वापस होते हैं।
झारखंड के देवघर में भी सावन मेला का आयोजन किया जाता है। हर साल करोड़ों कांवड़िये झारखंड के देवघर जिला स्थित विश्व प्रसिद्ध वैद्यनाथ धाम में बिहार के सुल्तानगंज में गंगा नदी से जल लेकर द्वादश ज्योतिर्लिंग में से एक का जलाभिषेक करते हैं। देवघर का सावन मेला भगवान शिव के सबसे बड़े मेलों में शुमार है। यहां सावन मेला को बड़े धूम धाम के साथ मनाते हैं।
सावन का पवित्र महीना शुरू होते ही भोले के भक्त पूरी भक्ति के साथ प्रभु का गुणगान करते हैं। छोटी काशी के नाम से विख्यात पौराणिक नगरी में सावन का मेला शुरू होते ही देश प्रदेश के लाखों श्रद्धालु अवढरदानी के जलाभिषेक को उमड़ते हैं।
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सावन सोमवार पूजा :
महादेव को भोलेनाथ भी कहा जाता है क्योंकि महादेव को केवल श्रद्धा पूर्वक जल चढ़ाकर भी प्रसन्न किया जा सकता है। लेकिन जब पूजा विधि की बात आती है तब हमें सामान्य विधि के तौर पर हर सावन सोमवार को सुबह उठकर नहा धोकर स्वच्छ मन से पूजा करना चाहिए। पूजा स्थल को स्वच्छ रखें तथा गंगाजल का उपयोग करके उस जगह को पवित्र बना ले। भगवान शिव जी को श्रद्धा पूर्वक सुपारी, पंच अमृत, नारियल, बेल पत्र, धतूरा, फल, फूल आदि अर्पित कर सकते हैं। दीपक जलाकर महादेव को ध्यान लगाएं। शिव पुराण, शिव चालीसा, महामृत्युंजय मंत्र आदि का पाठ कर सकते हैं ।
श्रावण माह भगवान शिव जी का अत्यंत प्रिय मास है। इस मास में शिव की भक्ति करने से उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है। उनके पूजन के लिए अलग-अलग विधान भी है। भक्त जैसे चाहे उनका अपनी कामनाओं के लिए उनका पूजन कर सकता है। सावन के महीने में प्रतिदिन श्री शिवमहापुराण व शिव स्तोस्त्रों का विधिपूर्वक पाठ करके दुध, गंगा जल, बेलपत्र, फलादि सहित शिवलिंग का पूजन करना चाहिए। इसके साथ ही इस मास में “ऊँ नम: शिवाय:” मंत्र का जाप करते हुए शिव पूजन करना अत्यंत ही लाभकारी माना जाता है।
सावन माह का मेला :
सावन के इस पवित्र माह में भारत के बहुत जगहों पर सावन मेला का भी आयोजन किया जाता है तथा इस मेला में घूमने के लिए भारत के कोने कोने से लोग घूमने आते हैं ।
१. काशी विश्वनाथ मेला :
सावन माह में काशी में सावन मेला का आयोजन किया जाता है। काशी के विश्वनाथ के दर्शन के लिए भारत के कोने-कोने से लोग आते हैं। यहां कांवड़ियों का भी भीड़ बहुत ज्यादा होता है ।
२. हरिद्वार का सावन मेला :
हरिद्वार में सबसे बड़ा सावन मेला का आयोजन किया जाता है। सावन माह के शुरू होते ही यहां कांवड़ियों का आना चालू हो जाता है। यहां पर भारत के कोने कोने से भगवान शिव के दर्शन के लिए आते हैं तथा पूजा पाठ करते हैं। जितने भी कांवड़िया यहां आते हैं वह गंगा जल को लेकर वापस होते हैं।
३. झारखंड में सावन मेला :
झारखंड के देवघर में भी सावन मेला का आयोजन किया जाता है। हर साल करोड़ों कांवड़िये झारखंड के देवघर जिला स्थित विश्व प्रसिद्ध वैद्यनाथ धाम में बिहार के सुल्तानगंज में गंगा नदी से जल लेकर द्वादश ज्योतिर्लिंग में से एक का जलाभिषेक करते हैं। देवघर का सावन मेला भगवान शिव के सबसे बड़े मेलों में शुमार है। यहां सावन मेला को बड़े धूम धाम के साथ मनाते हैं।
४. लखीमपुर का सावन मेला :
सावन का पवित्र महीना शुरू होते ही भोले के भक्त पूरी भक्ति के साथ प्रभु का गुणगान करते हैं। छोटी काशी के नाम से विख्यात पौराणिक नगरी में सावन का मेला शुरू होते ही देश प्रदेश के लाखों श्रद्धालु अवढरदानी के जलाभिषेक को उमड़ते हैं।
निष्कर्स :
इस तरह हमारे भारतीय संस्कृति में सावन माह का विशेष महत्व है और मैंने इस पोस्ट में यही बताने का प्रयाश किया है ।
🚩🚩 आपका दिन शुभ एवम् मंगलमय हो 🚩🚩
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🙏🙏🙏 धन्यवाद् 🙏🙏🙏
Excellent Content
जवाब देंहटाएंThanks
हटाएंNice post
जवाब देंहटाएंThanks for your comment on my post.
हटाएंSavan mah ke vrat puja ke bare me bataiyega sir jarurr
जवाब देंहटाएंJarur bataenge. Aap hamare sath bane rhe...Aapka dhanyawad
हटाएंSabhi jyotirling ke bare me bhi thoda jankari uplabhdha karaye sir taki sari jyotirlingo ki mahta samjh paye
जवाब देंहटाएंHan hamara dhyan edhr bhi hai. Dheere dheere aapko sari jankari milti rhegi. Eske liye aap hamare sath bane rhe. Aapki anmol raay ke liye dhanyawad ...
हटाएंThankyou
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