भारत की प्राचीन स्थापत्य कला हमारे भारतीय संस्कृति का सजीव चित्रण करती है। भारत में प्राचीन स्थापत्य कला का ऐसा चित्रण दिखता है जिसे देखकर विश्व भर के लोग चकित रह जाते हैं क्योंकि भारत में विभिन्न शैलियों के आधार पर स्थापत्य कला का उपयोग किया गया है। भारत के प्राचीन स्थापत्य कला को देखकर विश्व भर के लोग आश्चर्यचकित रह जाते हैं क्योंकि इतने पुराने समय में भी इतनी बारिकी से मनोरम रूप देना, कुछ हद तक आधुनिकता में भी संभव नहीं।
हमारे भारत की सबसे प्राचीन सभ्यता सिंधु घाटी सभ्यता है। जब से इसके बारे में बताया चला है तब से नया-नया रहस्य खुलता रहा है तथा स्थापत्य कला के बारे में भी पता चलता रहा है। इन सब चीजों को देखकर यह लगता है कि उस समय के लोग भी अपना विचार व्यक्त करने के लिए दीवारों पर खुदाई कर देते थे तथा अपने स्थापत्य कला का प्रदर्शन करते थे।सीमित आवश्यकताओं में विश्वास रखनेवाले, अपने कृषिकर्म और आश्रमजीवन से संतुष्ट आर्य प्राय: ग्रामवासी थे और शायद इसीलिए, अपने परिपक्व विचारों के अनुरूप ही, समसामयिक सिंधु घाटी सभ्यता के विलासी भौतिक जीवन की चकाचौंध से अप्रभावित रहे। कुछ भी हो, उनके अस्थायी निवासों से ही बाद के भारतीय वास्तु का जन्म हुआ प्रतीत होता है। इसका आधार धरती में और विकास वृक्षों में हुआ, जैसा वैदिक वाङ्मय में महावन, तोरण, गोपुर आदि के उल्लेखों से विदित होता है। अत: यदि उस अस्थायी रचनाकाल की कोई स्मारक कृति आज देखने को नहीं मिलती, तो कोई आश्चर्य नहीं।
समय की धारा के साथ वक्त बीतता गया तथा धीरे-धीरे नगरों की भी रचना हुई और स्थायी निवास भी बने। बिहार में मगध की राजधानी राजगृह शायद 8वीं शती ईसा पूर्व में उन्नति के शिखर पर थी। यह भी पता लगता है कि भवन आदिकालीन झोपड़ियों के नमूने पर प्रायः गोल ही बना करते थे। दीवारों में कच्ची ईंटें भी लगने लगी थीं और चौकोर दरवाजे खिड़कियाँ बनने लगी थीं। यह सब चीजें उस समय की मानसिकता को भी प्रदर्शित करती है। बौद्ध लेखक धम्मपाल के अनुसार, पाँचवीं शती ईसा पूर्व में महागोविन्द नामक स्थपति ने उत्तर भारत की अनेक राजधानियों के विन्यास तैयार किए थे। चौकोर नगरियाँ बीचोबीच दो मुख्य सड़कें बनाकर चार चार भागों में बाँटी गई थीं। एक भाग में राजमहल होते थे, जिनका विस्तृत वर्णन भी मिलता है। सड़कों के चारों सिरों पर नगरद्वार थे। मौर्यकाल (4थी शती ई. पू.) के अनेक नगर कपिलवस्तु, कुशीनगर, उरुबिल्व आदि एक ही नमूने के थे, यह इनके नगरद्वारों से प्रकट होता है। जगह-जगह पर बाहर निकले हुए छज्जों, स्तंभों से अलंकृत गवाक्षों, जँगलों और कटहरों से बौद्धकालीन पवित्र नगरियों की भावुकता का आभास मिलता है।
उदाहरण के तौर पर हम आपको कुछ स्थापत्य कला के बारे में बता रहे हैं जो विश्व का आकर्षण का केंद्र है जैसे कि मीनाक्षी मंदिर मदुरई, खजुराहो का कंदारिया महादेव मंदिर, आबू पर्वत पर स्थित देलवाड़ा जैन मंदिर आदि। इन सब जगहों पर स्थापत्य कला का चित्रण मिलता है।
सिंधु घाटी सभ्यता भारत की सबसे प्राचीन सभ्यता है जो आज से लगभग 5000 वर्ष पुराना सभ्यता है। सिंधु घाटी सभ्यता में मिले अवशेष से यह पता चलता है कि वे लोग एक पुरी व्यवस्था के साथ जीवन यापन करते थे। जब पूरे विश्व में जागरण का दौर नहीं था उस समय भारत पर व्यवस्थित सभ्यता थी। सोच सकते हैं कि आज से लगभग 5000 वर्ष पहले लोगों को पता था कि आने जाने के लिए सड़क होना चाहिए तथा पानी निकास के लिए नाली होनी चाहिए और रहने के लिए आवास की आवश्यकता है। उस समय के लोगों का नगर नियोजन संबंधित ज्ञान में परिपक्व थे। उस समय के मिले अवशेष से यह पता चलता है कि वे लोग ज्यादा मूर्ति पूजा में विश्वास नहीं रखते थे क्योंकि मंदिर के अवशेष नहीं मिले हैं। शिव की मूर्ति मिली है। इस प्रकार वे लोग निराकार शक्ति पर विश्वास रखते थे। सिंधु घाटी सभ्यता 1750 ईसा पूर्व आने तक खत्म हो गया। कारण का कोई प्रमाण नहीं है लेकिन नदी के किनारे बसे रहने के कारण बह गया या नष्ट हो गया।
1500 ईसा पूर्व में आर्यंस है और यही लोग वेद और उपनिषद लिखे। उनका कार्यकाल 1500 से 500 ईसा पूर्व तक था । इस तरह धीरे-धीरे एक पूरी सभ्यता विकसित होने लगी। पहले तो सभ्यता विकसित हुई थी हमें सिंधु घाटी नदी के किनारे हुई थी फिर बाद में धीरे-धीरे वे लोग गंगा नदी की ओर बढ़ने लगे तथा गंगा नदी के किनारे रहना चालू किए। चूंकि हम जानते हैं कि यदि कोई सभ्यता विकसित करनी हो तो नदी का रहना जरूर है क्योंकि यदि नदी है तो खेती किसानी मैं दिक्कत नहीं होती और यदि अन्य भरपूर है तो सभ्यता विकसित करने में दिक्कत नहीं जाती। आर्यंस का मुख्य व्यवसाय पशुपालन था ।
यह तो केवल हमारी भारतीय संस्कृति की शुरुआत है। धीरे धीरे समय की धारा के साथ साथ बहुत सारी सभ्यताएं आए तथा अभी अपने अवशेष छोड़ गए। फिर यह सभ्यताएं धीरे धीरे राजवंश को ग्रहण कर लिया। फिर बहुत सारे राजवंश शासक हुए जिन्होंने शासन किया और बहुत सारे स्थापत्य कला का भरपूर प्रयोग किया। प्रारंभिक में हमारी भारतीय संस्कृति हिंदू धर्म पर आधारित थी तत्पश्चात बहुत सारे धर्म का विकास हुआ और उन्होंने भी हमारे देश भारत पर शासन किया।
भारतीय स्थापत्य कला की विशेषताएं यह हैं कि सजीव चित्रण करता है। यदि हम भारत के प्राचीन स्थापत्य कला को देखते हैं तो उस समय काल की पूरी परिस्थितियां, युगो पुराना पौराणिक गाथाएं, मूर्ति कला का मनोरम चित्रण तथा बहुत सारी चीजें दीवारों पर खोदकर प्रदर्शित किया जाता था और इनको इतनी बारीकी से करते थे कि आधुनिकता की तकनीकी भी असक्षम है। भारत हिंदू प्रधान देश है तथा यहां बहुत सारी प्राचीन मंदिर भी बनी हुई है। भारत की प्राचीन स्थापत्य कला का सुंदर चित्रण यहां के मंदिरों के दीवारों पर दिखाई देती है। भारत में मंदिर बनाने का समय काल मौर्य काल से शुरू हुआ। समय के साथ साथ मंदिर बनाने के तरीका में परिवर्तन होना शुरू हुआ। जब हम प्राचीन मंदिर को देखते हैं तब दीवारों पर देवी-देवताओं की मूर्तिया बनी हुई होती हैं जो बड़ा ही अच्छा लगता है। इस तरह हमारे भारत के प्राचीन स्थापत्य कला भारत की प्राचीन भारतीय संस्कृति को बड़े ही अच्छे ढंग से प्रदर्शित करती है।
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भारत की प्राचीन संरचना तथा स्थापत्य कला :
हमारे भारत की सबसे प्राचीन सभ्यता सिंधु घाटी सभ्यता है। जब से इसके बारे में बताया चला है तब से नया-नया रहस्य खुलता रहा है तथा स्थापत्य कला के बारे में भी पता चलता रहा है। इन सब चीजों को देखकर यह लगता है कि उस समय के लोग भी अपना विचार व्यक्त करने के लिए दीवारों पर खुदाई कर देते थे तथा अपने स्थापत्य कला का प्रदर्शन करते थे।सीमित आवश्यकताओं में विश्वास रखनेवाले, अपने कृषिकर्म और आश्रमजीवन से संतुष्ट आर्य प्राय: ग्रामवासी थे और शायद इसीलिए, अपने परिपक्व विचारों के अनुरूप ही, समसामयिक सिंधु घाटी सभ्यता के विलासी भौतिक जीवन की चकाचौंध से अप्रभावित रहे। कुछ भी हो, उनके अस्थायी निवासों से ही बाद के भारतीय वास्तु का जन्म हुआ प्रतीत होता है। इसका आधार धरती में और विकास वृक्षों में हुआ, जैसा वैदिक वाङ्मय में महावन, तोरण, गोपुर आदि के उल्लेखों से विदित होता है। अत: यदि उस अस्थायी रचनाकाल की कोई स्मारक कृति आज देखने को नहीं मिलती, तो कोई आश्चर्य नहीं।
समय की धारा के साथ वक्त बीतता गया तथा धीरे-धीरे नगरों की भी रचना हुई और स्थायी निवास भी बने। बिहार में मगध की राजधानी राजगृह शायद 8वीं शती ईसा पूर्व में उन्नति के शिखर पर थी। यह भी पता लगता है कि भवन आदिकालीन झोपड़ियों के नमूने पर प्रायः गोल ही बना करते थे। दीवारों में कच्ची ईंटें भी लगने लगी थीं और चौकोर दरवाजे खिड़कियाँ बनने लगी थीं। यह सब चीजें उस समय की मानसिकता को भी प्रदर्शित करती है। बौद्ध लेखक धम्मपाल के अनुसार, पाँचवीं शती ईसा पूर्व में महागोविन्द नामक स्थपति ने उत्तर भारत की अनेक राजधानियों के विन्यास तैयार किए थे। चौकोर नगरियाँ बीचोबीच दो मुख्य सड़कें बनाकर चार चार भागों में बाँटी गई थीं। एक भाग में राजमहल होते थे, जिनका विस्तृत वर्णन भी मिलता है। सड़कों के चारों सिरों पर नगरद्वार थे। मौर्यकाल (4थी शती ई. पू.) के अनेक नगर कपिलवस्तु, कुशीनगर, उरुबिल्व आदि एक ही नमूने के थे, यह इनके नगरद्वारों से प्रकट होता है। जगह-जगह पर बाहर निकले हुए छज्जों, स्तंभों से अलंकृत गवाक्षों, जँगलों और कटहरों से बौद्धकालीन पवित्र नगरियों की भावुकता का आभास मिलता है।
उदाहरण के तौर पर हम आपको कुछ स्थापत्य कला के बारे में बता रहे हैं जो विश्व का आकर्षण का केंद्र है जैसे कि मीनाक्षी मंदिर मदुरई, खजुराहो का कंदारिया महादेव मंदिर, आबू पर्वत पर स्थित देलवाड़ा जैन मंदिर आदि। इन सब जगहों पर स्थापत्य कला का चित्रण मिलता है।
भारत की प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता :
सिंधु घाटी सभ्यता भारत की सबसे प्राचीन सभ्यता है जो आज से लगभग 5000 वर्ष पुराना सभ्यता है। सिंधु घाटी सभ्यता में मिले अवशेष से यह पता चलता है कि वे लोग एक पुरी व्यवस्था के साथ जीवन यापन करते थे। जब पूरे विश्व में जागरण का दौर नहीं था उस समय भारत पर व्यवस्थित सभ्यता थी। सोच सकते हैं कि आज से लगभग 5000 वर्ष पहले लोगों को पता था कि आने जाने के लिए सड़क होना चाहिए तथा पानी निकास के लिए नाली होनी चाहिए और रहने के लिए आवास की आवश्यकता है। उस समय के लोगों का नगर नियोजन संबंधित ज्ञान में परिपक्व थे। उस समय के मिले अवशेष से यह पता चलता है कि वे लोग ज्यादा मूर्ति पूजा में विश्वास नहीं रखते थे क्योंकि मंदिर के अवशेष नहीं मिले हैं। शिव की मूर्ति मिली है। इस प्रकार वे लोग निराकार शक्ति पर विश्वास रखते थे। सिंधु घाटी सभ्यता 1750 ईसा पूर्व आने तक खत्म हो गया। कारण का कोई प्रमाण नहीं है लेकिन नदी के किनारे बसे रहने के कारण बह गया या नष्ट हो गया।
आर्यन की सभ्यता :
1500 ईसा पूर्व में आर्यंस है और यही लोग वेद और उपनिषद लिखे। उनका कार्यकाल 1500 से 500 ईसा पूर्व तक था । इस तरह धीरे-धीरे एक पूरी सभ्यता विकसित होने लगी। पहले तो सभ्यता विकसित हुई थी हमें सिंधु घाटी नदी के किनारे हुई थी फिर बाद में धीरे-धीरे वे लोग गंगा नदी की ओर बढ़ने लगे तथा गंगा नदी के किनारे रहना चालू किए। चूंकि हम जानते हैं कि यदि कोई सभ्यता विकसित करनी हो तो नदी का रहना जरूर है क्योंकि यदि नदी है तो खेती किसानी मैं दिक्कत नहीं होती और यदि अन्य भरपूर है तो सभ्यता विकसित करने में दिक्कत नहीं जाती। आर्यंस का मुख्य व्यवसाय पशुपालन था ।
यह तो केवल हमारी भारतीय संस्कृति की शुरुआत है। धीरे धीरे समय की धारा के साथ साथ बहुत सारी सभ्यताएं आए तथा अभी अपने अवशेष छोड़ गए। फिर यह सभ्यताएं धीरे धीरे राजवंश को ग्रहण कर लिया। फिर बहुत सारे राजवंश शासक हुए जिन्होंने शासन किया और बहुत सारे स्थापत्य कला का भरपूर प्रयोग किया। प्रारंभिक में हमारी भारतीय संस्कृति हिंदू धर्म पर आधारित थी तत्पश्चात बहुत सारे धर्म का विकास हुआ और उन्होंने भी हमारे देश भारत पर शासन किया।
भारतीय स्थापत्य कला की विशेषता :
भारतीय स्थापत्य कला की विशेषताएं यह हैं कि सजीव चित्रण करता है। यदि हम भारत के प्राचीन स्थापत्य कला को देखते हैं तो उस समय काल की पूरी परिस्थितियां, युगो पुराना पौराणिक गाथाएं, मूर्ति कला का मनोरम चित्रण तथा बहुत सारी चीजें दीवारों पर खोदकर प्रदर्शित किया जाता था और इनको इतनी बारीकी से करते थे कि आधुनिकता की तकनीकी भी असक्षम है। भारत हिंदू प्रधान देश है तथा यहां बहुत सारी प्राचीन मंदिर भी बनी हुई है। भारत की प्राचीन स्थापत्य कला का सुंदर चित्रण यहां के मंदिरों के दीवारों पर दिखाई देती है। भारत में मंदिर बनाने का समय काल मौर्य काल से शुरू हुआ। समय के साथ साथ मंदिर बनाने के तरीका में परिवर्तन होना शुरू हुआ। जब हम प्राचीन मंदिर को देखते हैं तब दीवारों पर देवी-देवताओं की मूर्तिया बनी हुई होती हैं जो बड़ा ही अच्छा लगता है। इस तरह हमारे भारत के प्राचीन स्थापत्य कला भारत की प्राचीन भारतीय संस्कृति को बड़े ही अच्छे ढंग से प्रदर्शित करती है।
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It's knowledgeable. Very nice
जवाब देंहटाएंThankyou very much
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जवाब देंहटाएंThankyou very much
हटाएंNice content
जवाब देंहटाएंThanks Yogendra 🙏🙏
हटाएंBahut badhiya
जवाब देंहटाएंDhanyawad
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